फेज: 2
चुनाव तारीख: 26 अप्रैल 2024
सतना संसदीय क्षेत्र की सबसे बड़ी पहचान यहां स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल मैहर और चित्रकूट हैं। इस सीट पर लगातार जीत का छक्का लगा चुकी भाजपा ने इसे अपना गढ़ बना लिया है। यहां ब्राह्मण और पटेल मतदाता राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं। अध्यात्म और व्यापार के क्षेत्र में धनी इस अंचल के राजनेता कई बार राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र रहे हैं। सतना से सांसद बनने वाले तीन नेता कई राज्यों के राज्यपाल बने तो इस सीट से मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. अर्जुन सिंह ने भी चुनाव जीता। सतना से दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को एक साथ हार का चेहरा भी देखना पड़ा। वर्ष 1996 में बसपा के सुखलाल कुशवाहा ने पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह और स्व. वीरेंद्र सकलेचा को पराजित किया था।
शुरुआती दौर में कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव जीतते रहे
सतना संसदीय सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव जीतते रहे। वर्ष 1957 और वर्ष 1962 में सतना स्वतंत्र सीट नहीं थी। पांचवीं लोकसभा के गठन के लिए वर्ष 1971 में हुए चुनाव में भारतीय जनसंघ के नरेंद्र सिंह ने कांग्रेस का वर्चस्व खत्म कर दिया। वर्ष 1977 में जनता पार्टी के दादा सुखेंद्र सिंह भारतीय लोकदल के टिकट पर जीते। वर्ष 1980 और वर्ष 1984 में यह सीट कांग्रेस के पास रही। सबसे बड़ा उलटफेर वर्ष 1996 में हुआ, जब बसपा के सुखलाल कुशवाहा ने चुनाव जीत लिया। सुखलाल कुशवाहा प्रदेश के बसपा के पहले सांसद थे। वर्ष 1998 के बाद से यह सीट लगातार भाजपा के पास है।
सांसद हार गए विधानसभा चुनाव
इन दिनों सियासी गलियारों में सतना संसदीय सीट के बनते-बिगड़ते समीकरण की चर्चा है। हाल ही में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाए गए सांसद गणेश सिंह हार गए। उन्हें सिद्धार्थ कुशवाहा ने हराया। बसपा से सांसद रहे सुखलाल कुशवाहा को वर्ष 2004 में गणेश सिंह ने चुनाव हराया था। सुखलाल के बेटे सिद्धार्थ ने गणेश सिंह को चुनाव हराकर अपने पिता की हार का बदला ले लिया।
पूर्व पीएम का काफिला रुका, फिर शहर को मिला रेलवे ओवरब्रिज
वर्ष 1957 में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सतना पहुंचे थे। यहां उनका काफिला सर्किट हाउस से जबलपुर के लिए रवाना हुआ लेकिन रेलवे क्रासिंग बंद होने के कारण उन्हें रुकना पड़ा। ट्रेन रवाना होने के काफी देर बाद रेल फाटक खुला। पं. नेहरू ने इस क्रासिंग पर ओवरब्रिज बनवाने के निर्देश दिए। यह अलग बात है कि ओवरब्रिज बनकर तैयार होने में 15 वर्ष का समय लग गया।
राज्यपाल भी बने तीन पूर्व सांसद
वर्ष 1980 में कांग्रेस से सांसद चुने गए गुलशेर अहमद वर्ष 1993 में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बने। गुलशेर सतना जिले की अमरपाटन विधानसभा सीट से भी चुनाव जीते थे। वह वर्ष 1972 से 1977 तक विधानसभा अध्यक्ष भी रहे। एक अन्य सांसद अजीज कुरैशी मिजोरम और उत्तराखंड के राज्यपाल भी रहे। उन्हें उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का प्रभार भी दिया गया था। 24 जनवरी, 2020 को प्रदेश सरकार ने उन्हें मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अजीज कुरैशी लोकसभा चुनाव के दौरान केवल दो बार सतना आए थे। पहली बार नामांकन करने और दूसरी बार प्रमाण पत्र लेने। बावजूद इसके वे चुनाव जीते थे। राज्यपाल बनने वाले तीसरे सांसद अर्जुन सिंह थे।
राज्यपाल बनने के बाद सक्रिय राजनीति में लौटे थे अर्जुन सिंह
पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह विंध्य के ऐसे नेता हैं जो केंद्रीय मंत्री भी रहे और राज्यपाल भी। अर्जुन सिंह 14 मार्च,1985 को पंजाब के राज्यपाल बनाए गए और करीब आठ महीने तक इस पद पर रहे। इसके बाद वे फिर सक्रिय राजनीति में लौटे। वर्ष 1991 में कांग्रेस ने सतना से अर्जुन सिंह को उम्मीदवार बनाया और वे विजयी रहे। बाद में वे यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे। अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल ने भी सतना सीट से कई बार लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
सतना संसदीय क्षेत्र में 7 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं
सतना, रामपुर बघेलान, नागौद, रैगांव, चित्रकूट, मैहर, अमरपाटन
कुल मतदाता- 16,85,050
पुरुष मतदाता -8,81,863
महिला -8,03,180
थर्ड जेंडर -07