फेज: 4
चुनाव तारीख: 13 मई 2024
मध्य प्रदेश की राजनीति में खंडवा लोकसभा सीट का अपना अलग ही स्थान है। निमाड़ अंचल की इस महत्वपूर्ण सीट से कई दिग्गज नेता चुनाव लड़े और जीते भी। स्वतंत्रता के बाद यहां की राजनीति कांग्रेस को ही समर्थन देती रही। कांग्रेस में बगावत ने यहां भाजपा के लिए द्वार खोल दिए। इसके बाद भाजपा प्रत्याशी यहां अपवाद छोड़कर लगातार सफलता प्राप्त करते रहे।
आपातकाल के बाद जनसंघ ने कांग्रेस का एकाधिकार तोड़ने की शुरुआत कर दी थी। राम जन्मभूमि आंदोलन ने खंडवा क्षेत्र में भाजपा के पक्ष में माहौल बना दिया। वर्ष 1989 में कांग्रेस के कद्दावर नेता ठा. शिवकुमार सिंह बागी हो गए। उनके निर्दलीय चुनाव लड़ने से कांग्रेस के वोट बंट गए। इसका लाभ भाजपा प्रत्याशी अमृतलाल तारवाला को मिला और खंडवा में पहली बार ‘कमल’ खिला था।
इसके बाद तो यह क्षेत्र भाजपा का गढ़ बन गया। इसके बाद के नौ लोकसभा चुनावों में से सात बार यहां भाजपा उम्मीदवारों को सफलता मिली। इसमें से भी निमाड़ के खेवैया कहलाने वाले भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने छह चुनाव जीते। उन्होंने यहां कांग्रेस को हाशिये पर ला दिया। वर्ष 2021 में नंदकुमार सिंह चौहान के निधन के बाद हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने यहां अपना कब्जा बरकरार रखा।
खंडवा सीट से इन दिग्गजों का रहा जुड़ाव
खंडवा संसदीय सीट का भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष स्व. कुशाभाऊ ठाकरे, स्व. नंदकुमार सिंह चौहान और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे अरुण यादव प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस पर कुशाभाऊ ठाकरे दो बार, अरुण यादव तीन बार और नंदकुमार सिंह चौहान सात बार किस्मत आजमा चुके हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में तो नंदकुमार सिंह चौहान और अरुण यादव के बीच मुकाबला हुआ था। दो दिग्गजों के चुनाव मैदान में होने से यह सीट चर्चित हो गई थी। अरुण यादव को हार का सामना करना पड़ा था।
दो-चार रुपये में वोट की पर्ची बिकती भी थी
देश में वर्ष 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे। इन चुनावों में मतपत्र की जगह प्रत्याशी के नाम की मतपेटियां होती थीं। मतदाता को एक पर्ची दी जाती थी जिसे वह बूथ में रखी पसंदीदा प्रत्याशी की पेटी में डाल देता था। इस प्रक्रिया का राजनीतिक दलों के लोग बेजा फायदा उठाते थे। वे मतदाताओं से पर्ची खरीद लिया करते थे। यह एक तरह का भ्रष्टाचार था। वयोवृद्ध जनसंघ नेता सुरेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि उस समय कई लोग अपनी पर्ची मतपेटी में डालने के बजाय बाहर ले आते थे। कई नेता दो से चार रुपये देकर पर्ची खरीद लेते थे। बाद में ये पर्चियां उनके कार्यकर्ता अंदर जाकर अपने प्रत्याशी की पेटी में एक साथ डाल देते थे।
वोटों के ध्रुवीकरण का प्रयोग यहां रहा था विफल
इंदिरा लहर में वर्ष 1984 में मुस्लिम वोटों में सेंध के लिए जनसंघ ने जनता पार्टी के टिकट पर भोपाल के मुस्लिम नेता आरिफ बेग को खंडवा सीट से चुनाव लड़वाया था लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हो सका। उन्हे कांग्रेस के कालीचरण सकरगाये ने हरा दिया था। इसके बाद जनसंघ और भाजपा ने निमाड़ में कभी ऐसा प्रयोग नहीं किया।
खंडवा के नेताओं को मिला केवल तीन बार मौका खंडवा संसदीय सीट में बुरहानपुर जिला भी आता है। रोचक बात यह है कि बुरहानपुर के नेताओं को अब तक 12 बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। जबकि खंडवा जिले से अब तक मात्र तीन नेताओं को सांसद बनने का मौका मिला। वर्ष 1952 से अब तक 19 चुनाव और उपचुनाव हुए हैं। इसमें नौ बार कांग्रेस और आठ बार जनसंघ व भाजपा प्रत्याशियों ने चुनाव जीता।
8 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं खंडवा संसदीय क्षेत्र में
खंडवा, मांधाता, पंधाना, बुरहानपुर, नेपानगर, भीकनगांव, बड़वाह, बागली
कुल मतदाता- 20,90,386
पुरुष मतदाता- 10,60,784
महिला मतदाता- 10,29,544
थर्ड जेंडर- 58