फेज: 3
चुनाव तारीख: 7 मई 2024
वर्ष 1999 का लोकसभा चुनाव...। देश भर में महाभारत और उसके पात्रों का प्रभाव जनता के सिर चढ़कर बोल रहा था। महाभारत के सबसे लोकप्रिय पात्र भगवान श्रीकृष्ण थे। कृष्ण का रोल निभाने वाले नितीश भरद्वाज को जनता भगवान की तरह पूजती थी। उनकी लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा ने उन्हें राजगढ़ संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया। सामने थे कांग्रेस के दिग्गज नेता और तात्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह। नितीश भारद्वाज जब चुनाव प्रचार करने आए तो जनसैलाब सड़कों पर उतर गया। जगह-जगह लोग उनकी आरती उतारते तो महिलाएं चरण स्पर्श को आतुर रहतीं। लोग उन्हें तिलक कर उपहार स्वरूप रुपये भेंट करते थे।लग रहा था कि नितीश आसानी से जीत जांएगे। जब परिणाम आया तो सभी चौंक गए। परदे के कृष्ण के सामने राजनीति के लक्ष्मण विजयी हुए। यह उनकी चौथी जीत थी। यह घटना राजगढ़ संसदीय क्षेत्र का इतिहास बताने के लिए काफी है, जहां किसी भी दल या विचार से ज्यादा किले और महल का कब्जा रहा है। राजस्थान की सीमा से सटे इस क्षेत्र में पूर्व राजा-महाराजाओं का दबदबा रहा है। देश में मोदी राज आने के बाद तस्वीर बदली है। 2014 और 2019 में यहां से भाजपा के रोडमल नागर जीत दर्ज कराने में सफल रहे हैं।
आजादी के बाद भले ही देश में राजा-माहाराजाओं का राज बीते दिनों की बात हो गया हो, लेकिन लोकतंत्र में किले लगातार मजबूत होते चले गए। यही कारण रहा कि यहां कांग्रेस-भाजपा से कहीं अधिक किलों का प्रभाव रहा है। राजगढ़ लोकसभा अब तक हुए 18 चुनावों में से आठ बार राज परिवारों से जुड़े क्षत्रपों का कब्जा रहा है। जिसमें सर्वाधिक सात बार राघौगढ़ राज परिवार के सदस्य ही सांसद चुने गए हैं, जबकि एक बार नरसिंहगढ़ महाराज यहां से सांसद बनने में कामयाब रहे हैं।
ऐसा रहा है इतिहास
राजगढ़ लोकसभा की पहचान शुरूआत के दो चुनावों में शाजापुर के साथ होती थी। उन दोनों ही चुनावों 1952 व 1957 में एक साथ दो सांसद चुने जाने की परंपरा थी। एक सामान्य वर्ग से व एक आरिक्षत श्रेणी से। इसके बाद 1962 में राजगढ़ लोकसभा सीट बनी थी। लेकिन फिर 1967 व 71 में राजगढ़ जिला तीन लोकसभा क्षेत्रों शाजापुर, भोपाल व गुना में बंट गया था। इसके बाद 1977 से फिर राजगढ़ संसदीय सीट अस्तित्व में आई है। यहां पर जितना प्रभाव जनसंघ व भाजपा का रहा है उससे अधिक कांग्रेस का रहा है। अब तक हुए 18 चुनावों में 09 बार कांग्रेस का कब्जा रहा। छह बार जनसंघ व भाजपा का कब्जा रहा। दो बार जनसंघ व एक बार निर्दलीय का कब्जा रहा है। इसमें भी सबसे महत्वपूर्ण यह है कि 18 में से आठ बार यहां राजा-महाराजाओं का कब्जा रहा है। सात चुनावों में राघौगढ़ राजपरिवार के सदस्य सांसद बनने में कायमयाब रहे हैं। जबकि एक बार नरसिंहगढ़ रियासत के पूर्व महाराजा भानु प्रकाश सिंह सांसद बनने में सफल रहे थे। राज परिवारों की बात करें तो 1962 में जब राजगढ़ पहली बार संसदीय क्षेत्र बना तो नरसिंहगढ़ रियासत के पूर्व महाराजा भानु प्रकाश सिंह एक साथ निर्दलीय लोकसभा व विधानसभा चुनाव लड़े व जीते। बाद में विधानसभा सीट खाली कर दी थी। इसके अलावा दिग्विजय सिंह के गृह विधानसभा क्षेत्र राघौगढ़ व पिछली बार जिस चांचौड़ा से उनके भाई लक्षमण सिंह विधायक रहे, वह दोनों भले ही गुना जिले में आती है, लेकिन दोनों ही विधानसभा क्षेत्र राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। ऐसे में दिग्विजय सिंह यहां 1984 व 1991 में सांसद चुने गए, 1989 में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद जब वह मुख्यमंत्री बने तो 1994 में हुए लोकसभा के उपचुनाव में उनके भाई लक्ष्मण सिंह सांसद बने। इसके बाद लक्ष्मण सिंह लगातार 1996, 98, 99 में कांग्रेस से व 2004 में भाजपा से सांसद चुने गए थे।
शुरू के दो चुनाव में बनते थे एक साथ दो सांसद
1952 व 57 में शाजापुर-राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र था। उस समय अनारिक्षत व आरिक्षत वर्ग से एक-एक सांसद चुने जाते थे। ऐसे में 1952 में अनारिक्षत वर्ग से लीलालधर जोशी सांसद बने तो आरिक्षत वर्ग से भागू नंदू मालवीय सांसद चुने गए थे। इसके बाद 1957 में फिर अनारिक्षत वर्ग से लीलाधर जोशी व आरिक्षत वर्ग से कन्हैयालाल सांसद चुने गए थे। दोनों ही चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार ही चुनाव जीतने में सफल रहे थे।
दो चुनाव में जिले की पांच विधानसभा बंटी तीन लोकसभा क्षेत्रों में
राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र का अपना अलग ही इतिहास रहा है। शुरू के दो चुनाव 1952 व 57 में राजगढ़ स्वयं लोकसभा क्षेत्र नहीं था, बल्कि शाजापुर-राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र था। इसके बाद 62 में राजगढ़ लोकसभा अस्तित्व में आया, लेकिन फिर दो बार 1967 व 71 में राजगढ़ संसदीय क्षेत्र नहीं रहा। बल्कि राजगढ़ की पांचों विधानसभा क्षेत्र तीन अलग-अलग लोकसभा क्षेत्र शाजापुर, भोपाल व गुना में लगने लगी थी। राजगढ़, खिलचीपुर व सारंगपुर विधानसभा क्षेत्र लगते थे शाजापुर में, नरसिंहगढ़ विधानसभा क्षेत्र लगता था भोपाल में व ब्यावरा विधानसभा क्षेत्र लगता था गुना संसदीय क्षेत्र में।
दिग्गज कर चुके प्रतिनिधित्व
राजगढ़ जिले की जनता का प्रतिनिधित्व देश के बड़े नेताओं ने किया है। 1967 व 71 में जब राजगढ़ जिले की पांचों विधानसभा सीटें अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों में जुड़ी थी उस समय यहां की जनता का प्रतिनिधित्व देश के दिग्गज नेताओं ने किया। 1967 में शाजापुर से बाबूराव पटेल सांसद बने तो 1971 में देश के बड़े नेता जगन्नाथ राव जोशी सांसद चुने गए। इसी तरह भोपाल लोकसभा क्षेत्र से 1967 में जगन्नाथ राव जोशी सांसद बने तो 1971 में डा. शंकरदयाल शर्मा सांसद चुने गए, जो बाद में राष्ट्रपति बने थे। इसी तरह गुना लोकसभा सीट से 1967 में ग्वालियर राज घराने की महारानी राजमाता विजयराजे सिंधिया निर्दलीय सांसद चुनी गई। वह उस समय ग्वालियर से विधानसभा चुनाव भी लड़ी थी। ऐसे में कुछ दिन बाद लोसकभा सीट खाली कर दी। फिर हुए उपचुनाव में राजमाता ने एक समय कांग्रेस के बड़े नेता रहे जेबी कृपलानी को निर्दलीय चुनाव लड़ाया व वह सांसद बनने में कामयाब रहे। इसके बाद 1971 के चुनाव में राजमाता सिंधिया के पुत्र व ग्वालियर के महाराज माधवराव सिंधिया यहां से सबसे कम 25 वर्ष की उम्र में सांसद बनने में कामयाब रहे थे।
बाहर से आए नेता भी बने सांसद
राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र का पानी ऐसा मीठा है कि बाहरी नेताओं को भी खूब स्वीकार किया। यही कारण है कि 1977 व 80 में जनता पार्टी ने मुंबई के नेता वसंत कुमार पंडित को चुनाव मैदान में उतारा था। जिले की जनता ने खूब स्नेह उमेड़ा व पंडितजी दोनों बार लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे। जानकार बताते हैं कि वह सिर्फ चुनाव लड़ने के लिए ही यहां आते थे। इसके बाद 1989 में बाहर से आए नेता प्यारेलाल खंडेलवाल को भाजपा ने चुनाव लड़ाया और वह दिग्विजयसिंह को पटखनी देकर सांसद बनने में कायमयाब रहे।
बड़ी समस्या
- जिले में कहीं भी उद्योग नहीं है। जिसके कारण रोजगार के लिए जिलेवासियों को पलायन करना पड़ता है।
- शिक्षा के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं है। मेडिकल व तकनीकी शिक्षा के लिए बाहर जाना पड़ता है, हालांकि मेडिकल कालेज निर्माणाधाीन है
- कृषि प्रधान क्षेत्र है, लेकिन कृषि आधारित उद्योगों व कालेजों का अभाव
राजगढ़ संसदीय क्षेत्र में आने वाले विधानसभा क्षेत्र
-राजगढ़
-ब्यावरा
-नरसिंहगढ़
-खिलचीपुर
-सारंगपुर
-राघौगढ़
-चांचौड़ा
-सुसनेर
कुल मतदाता-18 लाख 60 हजार
कुल मतदान केंद्र-1900