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चुनाव तारीख: 7 मई 2024
छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में रायपुर राज्य मुख्यालय की सीट होने के कारण वीआईपी मानी जाती रही है। रायपुर राज्य की राजधानी है। डेमोग्राफी और विधानसभा सीटें यहां की कुल जनसंख्या करीब 25 लाख है। इनमें पिछड़ी जाति साहू-कुर्मी समाज का बाहुल्य है। दोनों क्रमश: 30 और 20 फीसद हैं। रायपुर लोकसभा क्षेत्र के तहत सात विधानसभा सीटें आती हैं। रायपुर से घरेलू विमानन सेवा शुरू हुई थी और लोगों को सुविधा मिलने से बुकिंग भी अच्छी हुई थी, लेकिन अभी यह बंद है। दोबारा टेंडर किया गया है। शहर में शंकर नगर, तेलघानी नाका, कबीर नगर में ओवरब्रिज और अंडरब्रिज का काम जारी है। वहीं, महोबा बाजार, राजेंद्र नगर ब्रिज बनने से यातायात व्यवस्था सुधरी है। रिंगरोड एक की दोनों तरफ आबादी बसी हुई है। यहां सड़क पर यातायात जाम हो रहा था, इसलिए यहां पर तीन फ्लाइओवर बनाए जा रहे हैं। इनका निर्माण लगभग पूरा हो चुका है। प्रदेश को पहला सरकारी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल 2018 में मिला, जिसमें न्यूरोलॉजी से लेकर नेफ्रोलॉजी समेत सभी प्रमुख विभाग आंबेडकर अस्पताल से शिफ्ट करवाए गए हैं। यहां मरीजों को सरकारी दरों में इलाज मुहैया करवाया जा रहा है। खारून नदी में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का काम शुरू हो चुका है। यहां 251 करोड़ रुपये की लागत से 17 नालों में तीन एसटीपी लग रहे हैं। स्थानीय मुद्दे स्मार्ट सिटी के तहत शहर को राज्य और केंद्र सरकारों ने करोड़ों रुपये दिए, लेकिन आज तक सिर्फ रेनोवेशन के अलावा दूसरा काम नहीं हुआ। जनता जवाब मांगती है, अफसरों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कारण यह भी है कि निगम और स्मार्ट सिटी के अफसर एक ही हैं। स्कॉय वॉक जिसे मौजूदा भाजपा सांसद रमेश बैस की पार्टी की सरकार ने ही स्वीकृत किया था, आज यह अधूरा पड़ा है। शहर इससे अव्यवस्थित हो गया है। शहर की आबादी गर्मी में प्यासी रहती है, क्योंकि सभी क्षेत्रों में पाइप-लाइन नहीं बिछ सकती है। रायपुर एयरपोर्ट को अंतररष्ट्रीय एयरपोर्ट का दर्जा दिलवाने के लिए यहां पर विमानन कंपनियों को लाने की जरूरत है। अगर टूरिज्म स्पॉट को विकसित किया जाए और उद्योग को बढ़ावा मिले तो संख्या बढ़ेगी। घरेलू विमानन सेवा बंद होने के बाद दोबारा शुरू नहीं हो सकी है। रायपुर की खास बातें रायपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र छत्तीसगढ़ के 11 संसदीय क्षेत्रों में से एक है। यह प्रदेश की राजधानी और प्रमुख राजनीतिक केंद्र है। पुराने भवन एवं किलों के अवशेष बताते हैं कि यह क्षेत्र 9वीं सदी से अस्तित्व में है। यह क्षेत्र मौर्य शासनकाल में दक्षिणी कोशल का हिस्सा था। सतवाहन राजाओं ने भी इस हिस्से पर शासन किया। खारुन नदी और महानदी के तट में बसा यह क्षेत्र प्रदेश का सबसे बड़ा शहर है। इस क्षेत्र को धान का कटोरा भी कहा जाता है।