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चुनाव तारीख: 19 अप्रैल 2024
रामायणकालीन दंडकारण्य के पठार पर स्थित बस्तर लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। यह नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, जहां हालात धीरे-धीरे बदल रहे हैं। फॉर्स ने नक्सलियों की मांद में घुसकर घेराबंदी कर दी है। वर्ष 1951 के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर वर्ष 1996 तक यह कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती रही, लेकिन वर्ष 1996 में पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी को यहां के लोगों ने चुना। 1998 से यह सीट भाजपा के पास है। पिछले दो दशक से कश्यप परिवार के सदस्य यहां से लगातार जीत रहे हैं। यहां की कुल जनसंख्या करीब 22 लाख है। यह आदिवासी बहुल है और यहां की आबादी का करीब 65 फीसद हिस्सा आदिवासियों का है। आठ विधानसभा सीटें मध्य और दक्षिण बस्तर के आठ विधानसभा क्षेत्र इस सीट के तहत आते हैं। बीजापुर व कोंटा विधानसभा सीट आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं। बस्तर संभाग की एकमात्र अनारक्षित सीट जगदलपुर भी इसका भाग है। पिछले पांच साल में बड़ी घटनाएं बीजापुर जिले के जांगला से प्रधानमंत्री ने आयुष्मान योजना का शुभारंभ किया था। अब टाटा के प्रभावितों की जमीन राज्य सरकार के द्वारा लौटाई जा रही है। इसे बड़ी घटना के तौर पर देखा जा रहा है। नक्सलवाद को नियंत्रित करने में फोर्स को सफलता कुछ हद तक मिली है, हालांकि अब भी बड़े भू-भाग पर उनका प्रभाव है। विकास का हाल और मुद्दे बस्तर के अंदरूनी इलाकों में सड़क, पानी, बिजली समेत मूलभूत सुविधाओं की कमी आज भी बनी हुई है। संचार की बदहाली भी दंतेवाड़ा समेत दक्षिण बस्तर के जिलों में है। खेती में पिछड़ापन बना हुआ है, यद्यपि इस दिशा में काफी प्रयास हो रहे हैं। यहां के प्रमुख मुद्दे ये हैं- 1. बैलाडीला की लौह अयस्क खदानों के निजीकरण व नगरनार के एनएमडीसी स्टील प्लांट के विनिवेशीकरण का मामला। 2. वर्तमान सांसद की सक्रियता और पिछले 20 साल से कश्यप परिवार के पास सांसदी होना। 3. भाजपा के 15 साल के कार्यकाल में कराए गए विकास के कार्य और पिछले दो माह में किसानों की कर्जमाफी, टाटा स्टील प्लांट के लिए जमीन देने वाले किसानों की जमीन वापसी समेत कांग्रेस के द्वारा पूरा किए गए जन घोषणापत्र के विषय। बस्तर की खास बातें बस्तर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र छत्तीसगढ़ 11 संसदीय क्षेत्रों में से एक है। इस संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इस वनीय क्षेत्र का जिला मुख्यालय जगदलपुर में है। 14वीं सदी में यहां पर काकतीय वंश का राज रहा। इस क्षेत्र पर अंग्रेज कभी अपना राज स्थापित नहीं कर पाए। इस क्षेत्र में गोंड एवं अन्य आदिवासी जातियां रहती हैं। इंद्रावती के मुहाने पर बसा यह इलाका वनीय क्षेत्र है। यहां पर टीक तथा साल के पेड़ बड़ी मात्रा में हैं। इस इलाके की खूबसूरती यहां के झरने और बढ़ा देते हैं। यहां खनिज पदार्थों में लोहा, अभ्रक सबसे ज्यादा मिलता है।