वॉशिंगटन। बीते दिनों सोशल मीडिया में एक वीडियो फुटेज काफी वायरल हुआ। इसके बारे में कहा जा रहा था कि हांग कांग के प्रदर्शनकारियों ने एक टूल का इस्तेमाल कर फेशियल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर को धोखा दिया था।दरअसल, इस वीडियो में दिख रहा था कि एक व्यक्ति के के ऊपर किसी दूसरे के चेहरे की इमेज बन रही थी, जिससे व्यक्ति की असली पहचान नहीं हो पा रही थी। दरअसल, सिर पर पहने जा सकने वाले एक हेडबैंड में लगे एक डिजिटर प्रोजेक्टर के जरिये व्यक्ति के चेहरे पर किसी दूसरे शख्स की एक डिजिटल इमेज बन रही थी। कहा जा रहा था कि हांग कांग में चेहरे को ढंकने पर लगाए गए प्रतिबंध को इस डिवाइस के जरिये धता बताया जा रहा था, ताकि प्रदर्शनकारियों की पहचान नहीं हो सके।
मगर, जो वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है, वह साल 2017 में एक आर्ट प्रोजेक्ट का है, जिसका 'एनानमस' (Anonymous) नाम रखा गया था। इस प्रोजेक्टर को नीदरलैंड के यूट्रेच्ट स्कूल ऑफ आर्ट्स (Utrecht School of the Arts) के छात्रों ने बनाया था। जिंग काई-लियू ने डिजिटल फेस प्रोजेक्टर बनाया था, जिसका मकसद चेहरे की पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर की कमियों की तरफ संस्थाओं का ध्यान आकर्षित करना था। वह बताना चाहते थे कि फेशियल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर को धोखा देना कितना आसान है। दरअसल, आजकल फेशियल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल मोबाइल फोन के लॉक खोलने से लेकर अपराधियों की पहचान करने के लिए की जा रही है। इसे लेकर लोगों ने निजता के अधिकार का भी हवाला दिया है।
इस वीडियो के सामने आने के बाद जानकारों ने विश्लेषण किया और कहा कि हांग कांग में ऐसी किसी डिवाइस का इस्तेमाल नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि हांगकांग में प्रदर्शनकारियों ने चेहरे को ढंकने पर लगे प्रतिबंध से बचने के लिए दूसरे तरीकों का इस्तेमाल कर रहे थे। कुछ लोगों ने सर्जिकल मास्क, गैस मास्क पहन रखे थे तो कुछ लोगों ने धूप के चश्मे लगा रखे थे, ताकि वे पुलिस की नजर से बच सकें। एक प्रदर्शनकारी ने तो अपने बालों से कई पतली-पतली चोटियां बना ली थीं और उससे ही चेहरो को ढंक लिया था।