हांगकांग। चीन ने एक अनूठा प्रयोग करते हुए इंसानी दिमाग वाले बंदर तैयार करने का दावा किया है। वैज्ञानिकों ने इंसानी दिमाग का जीन कुछ बंदरों में प्रत्यारोपित कर यह कारनामा किया है। वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग के बाद दावा किया है कि इससे यह पता लगाने का रास्ता खुलेगा कि मनुष्य में बुद्धि का विकास कैसे होता है। वैज्ञानिकों ने 11 बंदरों में एमसीपीएच1 जीन प्रत्यारोपित इस तरह के बंदरों को तैयार किया है।
वैज्ञानिक का कहना है कि मानव मस्तिष्क के विकास में यह जीन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रयोग के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि इंसानों की तरह ही इन बंदरों के दिमाग को विकसित होने में ज्यादा समय लगा है। शॉर्ट टर्म मेमारी के टेस्ट में भी इन बंदरों ने अच्छा प्रदर्शन किया।
जंगली बंदरों की तुलना में इन बंदरों ने किसी बात पर प्रतिक्रिया देने में भी काफी तेजी दिखाई। हालांकि इनके दिमाग का आकार नहीं बढ़ा है। इस प्रयोग को अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर चीन के कनमिंग इंस्टीट्यूट ऑफ जूलोजी व चाइनीज अकेडमी ऑफ साइंसेज के शोधकर्ताओं ने अंजाम दिया है। इस शोध को चीन की विज्ञान पत्रिका नेशनल साइंस रिव्यू में प्रकाशित किया है।
इस प्रयोग से जुड़े वैज्ञानिकों ने कहा है कि हमारे अध्ययन से सामने आया है कि मनुष्य से इतर अन्य स्तनधारी जीव इस दिशा में बड़ी जानकारी दे सकते हैं कि मनुष्य खास क्यों है।' प्रयोग में शामिल बंदरों को याददाश्त के परीक्षण से गुजारा गया। उन्हें स्क्रीन पर दिखे रंग और आकृति को याद रखना था। इसके बाद उनके दिमाग की एमआरआई भी की गई। परीक्षण में पांच बंदर सफल रहे।
चीन के इस प्रयोग पर अब सवाल भी उठाए जा रहे हैं यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोरेडो की जैकलीन ग्लोवर ने कहा है कि बंदरों में इंसानी दिमाग विकसित करना नुकसान पहुंचाने वाला है। वो कहां रहेंगे और क्या करेंगे? ऐसी प्रजाति मत बनाइए जो किसी भी रूप में अर्थहीन हो।
वहीं इसका समर्थन करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि ये बंदर जेनेटिक आधार पर इंसानों के करीब हैं, लेकिन इतने करीब नहीं है कि इन पर प्रयोग को अनैतिक कह दिया जाए। हांगकांग यूनिवर्सिटी के लैरी बॉम ने कहा है कि बंदरों और इंसानों के जीनोम में फर्क है। दोनों में लाखों डीएनए बेस अलग हैं। अध्ययन के दौरान करीब 20,000 में से एक जीन में बदलाव किया गया है। आप खुद समझ सकते हैं कि इसमें चिंता की क्या बात है।
बॉम ने बताया कि इस अध्ययन से इस सिद्धांत को बल मिला है कि दिमाग की कोशिकाओं का धीमा विकास मानव की बुद्धिमत्ता का एक कारण हो सकता है।
चीन में पहले भी हुए हैं ऐसे प्रयोग
जीन में बदलाव करने के प्रयोग चीन के वैज्ञानिकों ने पहले भी किए हैं। जनवरी में वैज्ञानिकों ने एक अफ्रीकी लंगूर (मैकेकस) से क्लोन के जरिये तैयार पांच मैकेकस के बारे में जानकारी दी थी। जीन में बदलाव करते हुए इनमें नींद से जुड़ी एक समस्या पैदा की गई थी। यह समस्या आगे चलकर अवसाद, व्यग्रता और शिजोफ्रेनिया जैसी दिमागी परेशानियों का भी कारण बन जाती है। वैज्ञानिकों का दावा था कि इंसानों की कई मनोवैज्ञानिक परेशानियों को समझने के लिए यह अध्ययन किया गया।
जीन एडिटेड जुड़वां बच्चों पर भी हुआ था
विवाद पिछले साल चीन के वैज्ञानिक ही जियानकुई ने पूरे विज्ञान जगत को यह दावा करके चौंका दिया था कि उन्होंने जीन में बदलाव करते हुए दो जुड़वां बच्चियों का जन्म कराया है। इन बच्चियों के जीन में इस तरह से बदलाव किया गया है कि उन्हें एड्स का कारण बनने वाला एचआइवी वायरस प्रभावित नहीं कर सकता। इस प्रयोग पर भी दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने आपत्ति जताई थी।