गोरक्षनाथ की तपोभूमि का कालिका मंदिर क्षतिग्रस्त
महायोगी गुरु गोरक्षनाथ ने इसी भूमि के कालिका मंदिर में तपस्या की थी।
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Publish Date: Thu, 30 Apr 2015 07:23:24 PM (IST)
Updated Date: Thu, 30 Apr 2015 07:30:13 PM (IST)
गोरखा (नेपाल)। भूकंप से मची तबाही के बाद दुखों का समंदर बने गोरखा जिले का भारत से गहरा नाता रहा है। महायोगी गुरु गोरक्षनाथ ने इसी भूमि के कालिका मंदिर में तपस्या की थी। शाह वंश के पृथ्वी नारायण शाह को उन्होंने प्रतापी राजा बनने का आशीष दिया था।
मान्यता है कि कालिका मंदिर में तपस्या करने के बाद वह परिसर में स्थित एक गुफा के अंदर चले गए थे, उसके बाद किसी ने भी उन्हें नहीं देखा। भूकंप के चलते यह मंदिर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है। प्रशासन ने दुर्घटना की आशंका में फिलहाल पर्यटकों के लिए इसे बंद कर दिया है।
तिब्बत सीमा से सटे गोरखा जिले को प्राकृतिक आपदा ने भले ही बदरंग कर दिया हो, लेकिन अपने गौरवशाली अतीत को समेटे गोरखा का भारत से जुड़ाव ढाई शताब्दी पूर्व ही हो गया था। गोरखा के सामाजिक कार्यकर्ता मोहन लाल क्षेत्री के मुताबिक भारत के गोरखपुर से चल कर गुरु गोरक्षनाथ गंडगी अंचल के सुनडाडा नामक स्थान पर पहुंचे थे। अनवरत तपस्या के बाद उनके दैवीय शक्ति को देखते हुए इस जिले का नाम गोरखा रख दिया गया।
कालिका मंदिर के पुजारी ईश्वरनाथ योगी ने बताया कि जब गोरक्षनाथ यहां तपस्या कर रहे थे उसी दौरान एक बालक उनकी गुफा में चला गया। उस दौरान गोरक्षनाथ द्वारा उसे खीर खाने को दी गई। यही बालक आगे चलकर शाह वंश के प्रतापी राजा पृथ्वी नारायण शाह के रूप में जाना गया। 66 ग्राम पंचायतों व पृथ्वी नारायण तथा पालकटार नगरपालिका में विभक्त इस जिले में आज भूकंप के चलते लोग मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जूझ रहे हैं।
जानकारों की मानें तो ऐतिहासिक व पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण इस जिले के पुनः पुराने स्वरूप में लाने में काफी वक्त लग जाएगा। काठमांडू से पहले नेपाल की राजधानी गोरखा में थी। शाह वंश के संस्थापक द्रव्य नारायण शाह ने सर्व प्रथम गोरखा को अपनी राजधानी बनाया था।
कालांतर में पृथ्वी नारायण शाह ने खंड-खंड बंटे नेपाल को एकजुट किया। पृथ्वी नारायण शाह द्वारा कुछ दिनों तक गोरखा से सत्ता संचालन के बाद राजधानी को काठमांडू स्थानांतरित कर दिया गया।