डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत चुके हैं। उनका शपथ ग्रहण समारोह 20 जनवरी 2025 को होगा। इसके बाद वह आधिकारिक रूप से राष्ट्रपति पद की शक्ति हासिल कर पाएंगे। मगर, इससे पहले ही खाड़ी क्षेत्र के इस्लामिक देशों में हलचल तेज हो गई है।
खाड़ी में जारी संघर्ष के बीच सोमवार को सऊदी अरब में एक महत्वपूर्ण अरब-इस्लामिक सम्मेलन किया गया। इसमें 50 से ज्यादा देशों के नेताओं ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का मुख्य एजेंडा सभी इस्लामिक देशों को इजरायल के खिलाफ एकजुट करना था। सऊदी अरब समेत कई देशों ने इजरायल के खिलाफ कड़ा एक्शन लेने की मांग की।
हालांकि, इस बैठक में शामिल होने के लिए ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान नहीं पहुंचे। उन्होंने इसकी वजह अपनी व्यस्तता को बताया है। इस सम्मेलन में सभी इस्लामिक देशों ने पहली बार लेबनान, गाजा, फलस्तीन में इजरायल की कार्रवाई के खिलाफ आवाज उठाई है। सभी देशों ने इजरायल के हमलों को तुरंत रोकने की अपील भी की है।
सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने दो टूक कहा कि फलस्तीनियों के जनसंहार की सऊदी अरब निंदा करता है। इजरायल को तुरंत अपनी कार्रवाई रोक देनी चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि फिलीस्तीन स्वतंत्र देश है और उसको इंडिपेंडेंट कंट्री का दर्जा मिलना चाहिए।
सम्मेलन ने तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने गाजा में हो रहे 'नरसंहार' की बात उठाई। उन्होंने कहा कि मुस्लिम देशों को एकजुट होकर जिस तरह से इसकी आलोचना करनी चाहिए, वैसी नहीं की जा रही है। गाजा की वर्तमान दशा इसी का नतीजा है। उन्होंने आरोप लगाया कि पश्चिमी देश पूरी तरह से इजरायल का समर्थन कर रहे हैं।
सम्मेलन में 33 सूत्री मसौदा पेश करते हुए फलस्तीन के प्रति समर्थन जाहिर किया गया है। साथ ही लेबनान, ईरान, इराक और सीरिया की संप्रभुता के उल्लंघन की निंदा की गई। सम्मेलन में यरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद के मुद्दा पर भी चर्चा हुई।
मुस्लिम नेताओं ने आरोप लगाया कि अल अक्सा मस्जिद की पवित्रता का इजरायल बार-बार उल्लंघन कर रहा है। इसके अलावा, इजरायल-गाजा संघर्ष खत्म करवाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की गई है। संयुक्त राष्ट्र की तरफ से फलस्तीन की समस्याओं का समाधान करने पर भी जोर दिया गया।