ऐसा माना जाता है कि एक समय छिंदवाड़ा जिला "छिंद" (खजूर-ताड़) के पेड़ों से भरा हुआ था, और उस स्थान का नाम "छिंद" - "वाड़ा" (वाड़ा का अर्थ है स्थान) था। एक और कहानी यह भी है कि शेरों की आबादी के कारण, यह माना जाता था कि इस जिले में प्रवेश करना शेरों की मांद के प्रवेश द्वार से गुजरने के समान है। इसलिए इसे "सिंह द्वार" कहा जाता था। कालांतर में यह "छिंदवाड़ा" बन गया। आजादी के बाद ''नागपुर'' को छिंदवाड़ा जिले की राजधानी बनाया गया और 1 नवंबर 1956 को छिंदवाड़ा को राजधानी बनाकर इस जिले का पुनर्गठन किया गया। भारिया और गोंड आदिवासियों के निवास के रूप में विश्व विख्यात जंगल और घाटी के नीचे बसा पातालकोट छिंदवाड़ा में ही है। इसके साथ ही सौंसर स्थित जाम सांवली मंदिर भी यहां की पहचान है।