इंस्टाग्राम, टिकटॉक और यूट्यूब के लगभग 23.5 करोड़ यूजर्स का डाटा लीक हो गया है। सभी यूजर्स के निजी प्रोफाइल डार्क वेब पर मौजूद हैं। उपभोक्ताओं के हित में काम करने वाली वेबसाइट "कंपेरिटेक" के सिक्योरिटी रिसर्चर्स के अनुसार इस डाटा चोरी के पीछे एक असुरक्षित डाटाबेस है। बता दें कि इंस्टाग्राम का स्वामित्व जहां फेसबुक के पास है वहीं शार्ट वीडियो मैसेजिंग एप टिकटॉक को चीन की बाइटडांस नियंत्रित करती है। यूट्यूब का मालिकाना हक गूगल के पास है।
फोर्ब्स ने सिक्योरिटी रिसर्चर्स के हवाले से बताया, "यूजर्स का डाटा कई डाटासेट में फैला हुआ था और प्रोफाइल रिकॉर्ड इंस्टाग्राम से छिन गए थे। जो डाटा लीक हुए हैं उनमें 4.2 करोड़ टिकटॉक यूजर्स के हैं जबकि 40 लाख यूट्यूब यूजर्स के हैं। बाकी डाटा इंस्टाग्राम यूजर्स के हैं।" पांच रिकॉर्डों में से एक में यूजर्स का टेलीफोन नंबर या ई-मेल एड्रेस, प्रोफाइल नाम, पूर्ण वास्तविक नाम, प्रोफाइल फोटो, अकाउंट का विवरण, फॉलोवर्स की संख्या और लाइक्स इत्यादि शामिल थे। वेबसाइट "कंपेरिटेक" के संपादक पॉल बिस्चॉफ ने कहा, "जानकारी शायद स्पैमर और फिशिंग अभियान चलाने वाले साइबर अपराधियों के लिए सबसे अधिक मूल्यवान होगी।" बिस्चॉफ ने रिपोर्ट में कहा, "हालांकि डाटा सार्वजनिक रूप से सुलभ है, लेकिन इसके डाटाबेस के तौर पर लीक होने से यह बहुत अधिक मूल्यवान है।"
डीप सोशल ने किया था प्रतिबंधित
शोधकर्ताओं के मुताबिक, "यूजर्स के प्रोफाइल डाटा को खंगालने के बाद 2018 में डीप सोशल नामक कंपनी के लीक हुए डाटा प्वाइंट्स को फेसबुक और इंस्टाग्राम दोनों ने प्रतिबंधित कर दिया था।" फेसबुक के प्रवक्ता के मुताबिक, "इंस्टाग्राम से लोगों की जानकारी को चुराना हमारी नीतियों का स्पष्ट उल्लंघन है। हमने जून 2018 में अपने प्लेटफॉर्म पर डीप सोशल की पहुंच को रोक दिया था और उन्हें कानूनी नोटिस भेजा था।" कंपेरिटेक के अनुसार, "सूचना दिए जाने के बाद डाटा मार्केटिंग कंपनी सोशल डाटा ने असुरक्षित डाटाबेस को बंद कर दिया।" सोशल डाटा ने डीप सोशल के साथ किसी तरह के संबंध से इन्कार किया है। इस महीने की शुरुआत में शाइनीहंटर्स नाम के हैकर्स ग्रुप ने 18 कंपनियों से 38.6 करोड़ यूजर्स का डाटा चुराकर हैकर्स फोरम पर डाल दिया था।
क्या होता है डार्क वेब
डार्क वेब अथवा डार्क नेट इंटरनेट का वह हिस्सा होता है, जिसे आमतौर पर प्रयुक्त किए जाने वाले सर्च इंजन से एक्सेस नहीं किया जा सकता है। रिसर्चर्स के मुताबिक इंटरनेट का केवल चार फीसद हिस्सा ही सामान्य लोगों के लिए विजिबल होता है। इसे सरफेस वेब कहा जाता है। डार्क वेब का इस्तेमाल मानव तस्करी, मादक पदार्थों की खरीद और बिक्री, हथियारों की तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों में किया जाता है। डार्क वेब की साइट्स को टॉर एन्क्रिप्शन टूल की सहायता से छिपा दिया जाता है, जिससे इन तक सामान्य सर्च इंजन से नहीं पहुंचा जा सकता है।
क्या होती है फिशिंग
इंटरनेट पर धोखाधड़ी का वह तरीका, जिसमें एक जाली वेबपेज आदि के माध्यम से यूजर्स से उसकी व्यक्तिगत और गोपनीय सूचनाएं ली जाती हैं और उनसे अवैध लाभ प्राप्त किया जाता है।