कपीश दुबे, नईदुनिया इंदौर (National Sports Day 2024)। भारत को खेलों की महाशक्ति बनाने और ओलंपिक में पदक जीतने का सपना देखने की जोशीली बातें अपनी जगह हैं, लेकिन कड़वी हकीकत यह है कि बचपन से लेकर परिपक्व होने तक खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए हमारे यहां कुछ भी खास नहीं होता।
स्कूली स्तर पर शुरुआत से लेकर कॉलेज पहुंचने तक खिलाड़ियों को न ठीक से मदद मिलती है, न फीस में छूट, न ही अन्य कोई प्रोत्साहन। ऐसे में खेलों का हाल-ए-बयां यही है कि खेल के साथ ही खेला हो रहा है, यहां खिलाड़ियों के साथ पग-पग पर बहुत झमेला हो रहा है। कैसे? आज राष्ट्रीय खेल दिवस पर इस विशेष स्टोरी से समझिए।
उच्च शिक्षा के लिए खिलाड़ियों को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश पर पहले खेल कोटे के तहत प्राथमिकता मिलती थी। फीस में भी रियायत मिलती रही है। मगर कुछ साल पहले प्रदेश में खेल कोटा ही खत्म कर दिया। अब राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय खिलाड़ियों को भी सामान्य विद्यार्थियों की तरह कॉलेज व विश्वविद्यालय में प्रवेश दिया जाता है। कई बार खेल संगठनों ने आवाज भी उठाई, मगर खेल कोटा तो छोड़िए, फीस में रियायत भी देना बंद कर दिया।
अधिकांश बच्चे सीबीएसई स्कूलों में पढ़ते हैं, लेकिन राज्य स्तर पर पदक जीते तो भी न अंकों का फायदा मिलता है, न आर्थिक पुरस्कार। मप्र बोर्ड में जरूर राज्य स्पर्धा खेलने पर 10 अंक, राष्ट्रीय स्पर्धा पर 20 अंक मिलते हैं। खिलाड़ी किसी भी विषय में इन्हें जुड़वा सकते हैं। मगर यहां भी राज्य स्पर्धा में पदक जीतने पर कुछ नहीं मिलता। दोनों ही जगह स्कूल स्तर की राष्ट्रीय स्पर्धा में पदक जीतने पर आर्थिक पुरस्कार मिलता है।
साई के पास कार्यालय तक नहीं
देश में खिलाड़ियों के प्रशिक्षण और प्रोत्साहन के लिए सबसे बड़ी संस्था भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) है, मगर इंदौर में इसका खेल मैदान तो दूर, एक कमरा तक नहीं है। एक प्रशिक्षक मनोहरसिंह नागर हैं, जिम्नास्टिक्स का प्रशिक्षण देते हैं।
मगर जगह और संसाधन साई के नहीं, जिम्नास्टिक्स संघ के हैं। मल्हार आश्रम में कुश्ती का प्रशिक्षण भी साई के जिम्मे है, लेकिन यहां कोच तक नहीं हैं। बड़ी ग्वालटोली में साई के एक अन्य कोच हैं, लेकिन खींचतान ऐसी कि वह इंदौर के बजाए भोपाल के निर्देशन में काम करते हैं।
इंदौर में खेल विभाग का कार्यालय रानी सराय स्थित पुलिस के दफ्तर में है। दो दशक से ज्यादा समय से ‘बीरबल की खिचड़ी’ की तरह विभाग का स्टेडियम बन रहा है, लेकिन अब तक नहीं बना। मजबूरन विभाग अपनी स्पर्धाएं निजी स्कूलों और खेल संघों की मदद से करवाता है। शिक्षा विभाग के पास मैदान जरूर हैं, लेकिन व्यवस्था नहीं। लगभग सभी आयोजन निजी स्कूलों में कराए जाते हैं क्योंकि बहुत से खेलों की सुविधा नहीं है।