Mirabai Chanu: भारत की वेटलिफ्टिंग एथलिट मीराबाई चानू (Mirabai Chanu) ने टोक्यो ओलिंपिक्स में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है। टोक्यो ओलिंपिक्स में यह भारत का पहला पदक है। यानि पहले ही दिन भारत का खाता खुल गया है। पूरे देश में Mirabai Chanu की वाहवाही हो रही है। बहुत कम लोगों को पता है कि शुरू में Mirabai Chanu वेटलिफ्टिंग में नहीं जाना चाहती थीं। उनकी पहली पसंद तीरंदाजी थी। बाद में उनका रुझान भरोत्तोलन की ओर हुआ और देश के इतिहास में उनका नाम दर्ज हो चुका है। Mirabai Chanu ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बचपन में उनके भाई फुटबॉल खेलते थे और शाम को जब घर आते थे, तो पूरी तरह से कीचड़ में सने होते थे। यह देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता था। मैं सोचती थी कि मैं कोई साफ-सुथरा खेल खेलूंगी। मुझे तीरंदाजी अच्छा लगता था कि क्योंकि इसे खेलने वाले साफ-सुथरे रहते हैं और स्टाइलिश भी।
Mirabai Chanu: वेटलिफ्टिंग में आने की पूरी कहानी
मणिपुर की राजधानी इंफाल से लगभग 20 किमी दूर नोंगपोक काकिंग गांव में एक कम आय वाले परिवार की 13 वर्षीय लड़की मीराबाई ने तभी तय कर लिया था कि वह एक खिलाड़ी के रूप में प्रसिद्धि अर्जित करेंगी। इस दौरान वे एक बार अपने चचेरे भाई के साथ 2008 की शुरुआत में इंफाल में भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) केंद्र पर गईं। वे तीरंदाज बनना चाहती थीं। इसके लिए रजिस्ट्रेशन भी कर लिया था, लेकिन किस्म्त से पहले दिन कोई ट्रेनिंग नहीं हुई। इसे सौभाग्य ही कहेंगे कि उन्होंने उस दिन मणिपुरी भारोत्तोलक कुंजारानी देवी की क्लिपिंग देखी, जिसने उन्हें प्रेरित किया। इसके साथ ही उनका रुझान भारोत्तोलन की ओर बढ़ा और आज सिल्वर जीता। इस उपलब्धि में पूर्व अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलक और कोच अनीता चानू का भी अहम योगदान है।
Mirabai Chanu: रेलवे ने दी है टीसी की नौकरी
भारतीय रेलवे में मुख्य टिकट निरीक्षक (टीसी) की नौकरी पाने वालीं मीराबाई लगातार मेहनत करती रहीं और विश्व स्तरीय भारोत्तोलक बन गईं। उन्होंने ग्लासगो में 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में 170 किलो वजन उठाते हुए रजत जीता। इसके बाद रियो ओलंपिक में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद 2016 के सीनियर नेशनल में 186 किग्रा के साथ स्वर्ण पदक जीता।