इंदौर (कपीश दुबे)। भारत के खिलाफ 22 दिसंबर को होने वाले टी-20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच के लिए श्रीलंकाई टीम गुरुवार को इंदौर पहुंचेगी। 20 साल बाद पड़ोसी देश की टीम पहली बार शहर आ रही है।
पिछली बार जब 25 दिसंबर 1997 को इंदौर के नेहरू स्टेडियम में दोनों के बीच वन-डे अंतरराष्ट्रीय मैच हुआ था तो मात्र 3 ओवर के बाद रद्द कर दिया गया था क्योंकि श्रीलंका को लगा कि पिच खराब होकर खेलने लायक नहीं है। बीते 20 सालों में सभी के मन में सवाल है कि आखिर हुआ क्या था? उस घटना को लेकर बहुत से किस्से और अटकलें चर्चा में रहें, लेकिन सच्चाई सामने नहीं आई। अब 20 साल बाद उस मैच का पिच बनाने वाले तत्कालीन क्यूरेटर और एमपीसीए के पूर्व सचिव नरेंद्र मेनन ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए नईदुनिया से चर्चा की और बताया कि आखिर हुआ क्या था। चर्चा में उन्होंने नाम लिए बिना संकेत दिए कि शायद किसी को उनके बढ़ते नाम से दिक्कत थी, लेकिन वे किसी को दोष नहीं देना चाहते।
नरेंद्र मेनन ने कहा...
'मैच से पहले मैं तीन दिन के लिए मैच करने नागपुर गया था। इंदौर आया तो पिच अच्छी लग रही थी। तब बीसीसीआई के सचिव जयवंत लेले थे। पिच को लेकर कुछ चर्चाएं थी तो उन्होंने खुद मैच से एक दिन पहले पिच पर गेंदबाजी कराकर देखा और कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मगर जब श्रीलंका ने 3 ओवर बाद मैच खेलने से इनकार किया तो मैं हैरान था। बाद में यह सुनने को मिला कि उन्होंने एक दिन पहले ही तय कर लिया था कि मैच नहीं खेलना है। यह क्रिकेट से जुड़े सभी लोगों को पता है, लेकिन ऐसा क्यों किया यह आज भी राज है। जब मन ही बना लिया कि नहीं खेलना है तो कोई क्या कर सकता है। अब तो भ्रष्टाचार रोधी इकाई बारीकी से जांच करती हैं, लेकिन तब ऐसा कुछ नहीं था।
इस मैच के बाद बीसीसीआई ने पूर्व कप्तान कपिल देव को जांच करने इंदौर भेजा। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पिच में कुछ भी गलत नहीं था। यह रिपोर्ट आज भी बीसीसीआई और एमपीसीए के पास रखी है। कपिल के शब्द मुझे याद हैं जब उन्होंने कहा था, 'देयर इज नथिंग रांग इन द विकेट, डोंट वरी।" वापस लौटते समय वे विमानतल पर चेक इन कर चुके थे, लेकिन मेरा उदास चेहरा देखकर वापस लौटे। ऐसा करने की इजाजत नहीं होती, लेकिन कपिल का तब बड़ा रुतबा था। वे बाहर आकर कहने लगे, 'सर आपका चेहरा क्यों उदास है। आपने कुछ गलत नहीं किया। आपको कुछ नहीं होगा।"
यदि मैंने कुछ गलत किया होता तो एमपीसीए, बीसीसीआई या आईसीसी मेरे खिलाफ कार्रवाई करते, सजा देते मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस घटना के बाद मेरा मन भर गया और मैंने अंपायरिंग का रुख किया। मैं किसी को बदनाम करना नहीं चाहता, लेकिन हो सकता है किसी ने नीचा दिखाने के लिए ऐसा किया हो। तब इतने उपकरण, सुविधाएं और प्रशिक्षण नहीं था। क्यूरेटर शब्द भी नहीं था। मैं शौक के लिए करता था और खाना भी अपने पैसे से खाता था। मैंने अंडर-16 से लेकर रणजी मैचों के लिए पिच बनाई, लेकिन कभी कुछ नहीं हुआ। अब तमाम सुविधाएं होने के बावजूद मैच रद्द होते हैं।
बतौर अंपायर मेनन का करियर :