मल्टीमीडिया डेस्क। महर्षि वाल्मीकि रामायण के रचयिता थे। रामायण जैसे कालजयी ग्रंथ को लिखकर उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को भारत के जनमानस के ह्दय में विराजित कर दिया। उन्होने संस्कृत में रामायण की रचना की, जो वाल्मीकि रामायण के नाम से प्रसिद्ध हुई। इनके द्वारा रचित रामायण में कुल 24000 श्लोक हैं। कहा जाता है कि वाल्मीकि ने संस्कृत के पहले महाकाव्य की रचना की थी इसलिए वह आदिकवि कहलाए। महर्षि वाल्मीकि का अवतरण शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उन्होंने ज्ञान प्राप्ति के बाद पौराणिक ग्रंथ रामायण की रचना की थी।
महर्षि वाल्मीकि के पिता का नाम प्रचेता और माता का नाम चर्षणी था। एक बार जब वाल्मीकि तपस्या में लीन थे उस समय समाधिस्त रहते हुए उनके शरीर को दीमकों ने ढक दिया था। तपस्या पूरी होने के बाद वह दीमकों की बांबी से निकले इसलिए यह वाल्मिकी के नाम से प्रसिद्ध हुए।
डाकू रत्नाकर से महर्षि बने थे वाल्मीकि
महर्षि वाल्मीकि का पहले नाम रत्नाकर था और लूटपाट करना उनका पेशा था। राहगीरों को लूटकर वह अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। उस समय लोग उनको रत्नाकर डाकू के नाम से पहचानते थे। एक बार निर्जन वन में भ्रमण करते हुए उनको नारद मुनि मिले। डाकू रत्नाकर ने उनको लूटने का प्रयत्न किया। तब महर्षि नारद ने उनसे पूछा कि तुम यह निम्न कोटी का काम क्यों करते हो? इस पर डाकू रत्नाकर ने जवाब दिया कि वह अपने परिवार का पेट पालने के लिए यह काम करते हैं। इसके बाद महर्षि नारद ने उनसे प्रश्न किया कि, जो अपराध तुम अपने परिवार का पेट पालने के लिए करते हो क्या उस पाप में तुम्हारा परिवार भी भागीदार बनने के लिए तैयार है। यह सुनकर रत्नाकर अचंभे में पड़ गए।
इसके बाद महर्षि नारद ने डाकू रत्नाकर से कहा कि जिस परिवार के लिए तुम यह पापकर्म कर रहे हो, वह यदि इसमें भागीदार बनना नहीं चाहता है तो फिर किसके लिए यह गलत काम कर रहे हो? इतना सुनते ही डाकू रत्नाकर ने महर्षि नारद के चरण पकड़ लिए और तपस्या का मार्ग अपना लिया और वन में जाकर समाधि में लीन हो गए। जिस समय महर्षि नारद ने रत्नाकर को सत्य का ज्ञान करवाया था उस समय उन्होंने रत्नाकर को राम नाम के जप का उपदेश भी दिया था। लेकिन उच्चारण की दिक्कत के चलते वह राम-राम का जाप नहीं कर पा रहे थे तब महर्षि नारद ने राम-राम की जगह मरा-मरा का जाप करने की उनको आज्ञा दी। इस तरह डाकू रत्नाकर सच्चे दिल से मरा-मरा का जाप करते हुए महर्षि वाल्मीकि बन गए।