कुल्लू। भारत में कई अद्भुत मंदिर हैं। उन्हीं में से एक है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित बिजली महादेव। कुल्लू का पूरा इतिहास बिजली महादेव से जुड़ा हुआ है। कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत पर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है। पूरी कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप के आकार की है। इस सांप का वध भगवान शिव ने किया था।
जिस स्थान पर मंदिर है वहां शिवलिंग पर हर बारह साल में बिजली गिरती है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है। यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं। कुछ ही माह बाद शिवलिंग ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है। इस शिवलिंग पर हर बारह साल में बिजली क्यों गिरती है और इस जगह का नाम कुल्लू कैसे पड़ा इसके पीछे एक पौराणिक कथा है।
कुलान्त राक्षस ने लिया था अजगर का रूप कुल्लू घाटी के लोग बताते हैं कि बहुत पहले यहां कुलान्त नामक दैत्य रहता था। दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार, लाहौल स्पीति सेमथाण गांव आ गया। दैत्य रूपी अजगर कुण्डली मार कर ब्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था। इसके पीछे उसका उद्देश्य यह था कि यहां रहने वाले सभी जीव-जंतु पानी में डूब कर मर जाएंगे। भगवान शिव कुलान्त की इस योजना से चिंतित हो गए थे।
अजगर के कान में धीरे से बोले शिव बड़े जतन के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर को अपने विश्वास में लिया। शिव ने उसके कान में कहा कि तुम्हारी पूंछ में आग लग गई है। इतना सुनते ही जैसे ही कुलान्त पीछे मुड़ा तभी शिव ने उसके सिर पर त्रिशूल से वार कर दिया। त्रिशूल के प्रहार से कुलान्त मारा गया। कुलान्त के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया।
उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा का पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया। कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और उधर मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलान्त के शरीर से निर्मित मानी जाती है। कुलान्त से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है। शिव ने इंद्र से बिजली गिराने प्रार्थना की थी कुलान्त दैत्य के मरने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वे बारह साल मेंएक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें। हर बारहवें साल में यहां बिजली गिरती है।
इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है। शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके स्थानीय पुजारी उन टुकड़ों को मक्खन से जोड़कर फिर से लिंग के तौर पर स्थापित कर देता है। कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है। बिजली शिवलिंग पर ही क्यों गिरती है? बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन धन को इससे नुकसान पहुंचे। भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर ले लेते हैं।
इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है। भादौ के महीने में यहां मेलासा लगा रहता है। कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग सात किलोमीटर है। शिवरात्रि पर भी यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। सर्दियों में होती है यहां भारी बर्फबारी यह जगह समुद्र स्तर 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। सर्दी के मौसम में यहां भारी बर्फबारी होती है।
इस पूरे क्षेत्र की तरह ही कुल्लू में भी महादेव प्रिय देवता हैं। कहीं वे सयाली महादेव के रूप में प्रतिष्ठित हैं तो कहीं ब्राणी महादेव के रूप में। कहीं वेजुवाणी महादेव हैं तो कहीं बिजली महादेव। बिजली महादेव का अपना ही महात्म्य व इतिहास है। ऐसा लगता है कि बिजली महादेव के इर्द-गिर्द समूचा कुल्लू का इतिहास घूमता है। हर मौसम में दूर-दूर से लोग बिजली महादेव के दर्शन करने आते हैं।