मल्टीमीडिया डेस्क। कैलाशपति महादेव को कल्याण का देवता माना जाता है साथ ही वो बुराइयों और दुष्टों के संहार के देवता भी है। वो भस्म धारण करते हैं तो ब्रह्माण्ड की अथाह धनराशि भी उनके चरणों में समर्पित है। भोले भंडारी हैं तो अपनी क्रोधाग्नि की अग्नि में जलाकर भस्म भी कर देते हैं। भूतल से लेकर आसमान की गहराईयों तक अभय और सुरक्षाकवच देने वाले श्रीशिव विध्वंसक हथियारों के अधिपति भी है, जो बेहद संहारक और शत्रु को पराजित करने वाले हैं और जिनकी मदद से देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की है।
धनुष पिनाक
भोलेनाथ के पास पिनाक नाम का धनुष है। कहा जाता है कि पिनाक की टंकार से ही बादल फट जाते थे और धरती पर कंपन पैदा हो जाता था। पिनाक के एक तीर से शिव ने त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों का विध्वंस कर दिया गया था। देवी और देवताओं के युग की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवरात को सौंप दिया गया था।
उल्लेखनीय है कि राजा दक्ष के यज्ञ में यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भोलेनाथ बहुत क्रोधित हो गए थे और उन्होंने सभी देवताओं को अपने पिनाक धनुष से नष्ट करने की ठान ली थी। पिनाक की एक टंकार से धरती का वातावरण भयानक हो गया था। बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत किया गया, उसके बाद उन्होंने यह धनुष देवताओं को दे दिया।
देवताओं ने धनुष पिनाक राजा जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित रखा था। इस धनुष को भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया था।
शिव के चक्र
पौराणिक मान्यता के अनुसार सभी प्रमुख देवताओं के अपने अस्त्र-शस्त्र है और इनमें चक्र प्रमुख शस्त्र है। भगवान भोलेनाथ के पास भवरेंदु नाम का चक्र है, जबकि विष्णुजी के पास कांता चक्र और देवी दुर्गा के पास मृत्यु मंजरी नाम का चक्र है। इसी तरह सुदर्शन चक्र का आख्यान भी महादेव से शुरू होता है। मान्यता है कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद इसको उन्होंने श्रीहरी को सौंप दिया। आवश्यकता होने पर उन्होंने सुदर्शन चक्र को देवी पार्वती को प्रदान किया। देवी पार्वती ने इसको परशुराम को सौंप दिया और परशुरामजी ने इस चक्र को श्रीकृष्ण को सौंप दिया।
त्रिशुल
महादेव के पास कई तरह के अस्त्र- शस्त्र थे। भगवान नीलकंठ ने इन सभी अस्त्र- शस्त्रों को देवताओं को सौंप दिया था, लेकिन उन्होंने त्रिशूल को उन्होंने अपने पास रखा। शास्त्रोक्त मान्यता है कि यह अत्यंत घातक और मारक शक्ति वाला हथियार है। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का प्रतीक है। त्रिशूल में तीन तरह की शक्तियां सत, रज और तम समाई हुई है। प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन।
पाशुपतास्त्र
पूरी सृष्टि के विनाश की क्षमता रखने वाला पाशुपतास्त्र भी शिव के प्रमुश हथियारों में से एक है। इसकी बनावट एक तीर के समान है और इसको चलाने में धनुष का प्रयोग करना पड़ता है। महाभारत में यह हथियार अर्जुन के पास था, लेकिन जनहित को ध्यान में रखते हुए उसने कभी इसका प्रयोग नहीं किया।
योगेंद्र शर्मा