पद्म पुराण में कहा गया है कि वैसाख माह में प्रात: स्नान का महत्व अश्वमेध यज्ञ के समान है। वैसाख शुक्ल सप्तमी को महर्षि जह्नु ने अपने दक्षिण कर्ण से गंगाजी को बाहर निकाला था। इसीलिए गंगा का एक नाम जाह्नवी भी है। अत: सप्तमी को गंगाजी के पूजन का विधान है।
भगवान बद्रीनाथ की यात्रा की शुरुआत भी इसी माह होती है। वैसाखी बंगाल में 'पैला (पीला) बैसाख' नाम से, दक्षिण में 'बिशु' नाम से और केरल, तमिलनाडु, असम में 'बिहू' के नाम से मनाया जाता है।
सिख समाज वैसाखी के त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियां मनाते हैं। इसीलिए यह त्योहार पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार और खरीफ की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक बताया गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु गोविन्द सिंह ने वैसाख माह की षष्ठी तिथि के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन मकर संक्रांति भी थी। इसी कारण से वैसाखी का पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा। प्रत्येक 36 साल बाद भारतीय चन्द्र गणना के अनुसार बैसाखी 14 अप्रैल को पड़ती है।
वैसाखी का त्योहार बलिदान का त्योहार है। मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने तेगबहादुर सिंह को दिल्ली के चांदनी चौक पर शहीद कर दिया था, तभी गुरु गोविंदसिंह ने अपने अनुयायियों को संगठित कर 'खालसा पंथ' की स्थापना की थी।
अलग-अलग राज्य, अलग-अलग पर्व : बंगाल का नया वर्ष वैशाख महीने के पहले दिन 14 अप्रैल से शुरू होता है। बंगाल में इस दिन से ही फसल की कटाई शुरू होती है। इस दिन नया काम करना शुभ मानकर नए धान के व्यंजन बनाए जाते हैं।
मलयाली न्यू ईयर विशु वैशाख की 13-14 अप्रैल से ही शुरू होता है। केरल में इस दिन धान की बोवनी आरंभ होती है। हल और बैलों को रंगोली से सजाकर पूजा कर बच्चों को उपहार दिए जाते हैं।
तमिल लोग 13 अप्रैल से नया साल पुथांदू मनाते हैं। असम में लोग 13 अप्रैल को नया वर्ष बिहू मनाते हैं।