धर्म डेस्क, इंदौर। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी 18 जून मंगलवार को मनाई जा रही है। निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे कठिन माना जाता है। इस दिन दान पुण्य करने का महत्व भी शास्त्रों में बताया है।
निर्जल शब्द का अर्थ बिना जल के होता है, इसलिए यह एकादशी बिना पानी और भोजन के मनाई जाती है। इस दिन व्रत रखने वाले साधक भोजन और पानी का सेवन नहीं करते हैं। इस व्रत को करने से आपको पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
विष्णु पुराण में निर्जला एकादशी का महत्व बहुत ही खास माना गया है। माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से वर्षभर की सभी एकादशी का व्रत करने के समान फल की प्राप्ति होती है। इस दिन सिद्ध, शिव व त्रिपुष्कर योग भी बन रहे हैं।
ज्योतिषाचार्य सुनील चौपड़ा ने बताया कि निर्जला एकादाशी के दिन व्रत करना सभी पवित्र तीर्थों पर स्नान करने के बराबर है। इस दिन स्नान-दान करने से साधक की सभी चिंताएं दूर होती हैं और उसे बैकुंठ में स्थान मिलता है। निर्जला एकादशी पर व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से लंबी आयु की प्राप्ति होती है। इस दिन सिद्ध, शिव व त्रिपुष्कर योग भी बन रहे हैं।
पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 17 जून की सुबह 4 बजकर 42 मिनट से शुरू हो गई है। यह अगले दिन 18 जून को सुबह 6 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी।
निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को है और 19 जून को व्रत का पारण किया जाएगा। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद इसका पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना जरूरी होता है। द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गई हो, तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए। द्वादशी तिथि के अंदर पारण ना करना पाप करने के समान होता है।