माता अपने भक्तों के जीवन की आवश्यकताओं का सदा ख्याल रखती है। उसके सुख-दुख में हर कदम पर साथ देती है। ताकि उसके भक्त किसी परेशानी में न पड़ें। मां के भक्तों को कभी शत्रु परेशान नहीं करते हैं, लेकिन इसके बावजूद यदि शत्रुबाधा उसके भक्त पर आती है तो मां उसको अभय होने का वरदान प्रदान करती है।
मां के कई स्वरूप है जो ऐश्वर्य के वरदान से लेकर सुरक्षा का कवच तक प्रदान करते हैं। मध्यप्रदेश में मालवा की भूमि पर एक ऐसा ही देवी मंदिर है मां बगलामुखी का, जहां दर्शनमात्र से सुख-समृद्धी के आशीर्वाद के साथ शत्रुबाधा का निवारण होता है। बगलामुखी माता का मंदिर आगर जिले के नलखेड़ा में स्थित है।
तीन मुखों वाली त्रिशक्ति है माता बगलामुखी
पृथ्वीलोक में माता बगलामुखी तीन स्थानों पर विराजमान है, जो दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) में हैं। नलखेड़ा में तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का मंदिर लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। ऐसी मान्यता है कि मध्य में मां बगलामुखी, दाएं मां महालक्ष्मी और बाएं मां सरस्वती विराजमान हैं।
विजय का वरदान देती है मां
मां बगलामुखी का त्रिशक्ति स्वरूप में मंदिर भारत में और कहीं नहीं है। द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहां देश भर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत और भक्तगण तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। आमजन भी अपनी मनोकामना पूरी करने या किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ-हवन और पूजा-पाठ करवाते हैं। कहा जाता है कि मां भगवती बगलामुखी का यह मंदिर बीच श्मशान में बना हुआ है।
दसमहाविद्या में है आठवीं महाविद्या
शास्त्रों में वर्णित दसमहाविद्याओं में माता बगलामुखी आठवीं महाविद्या हैं। इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं। ये स्तम्भन की देवी हैं। शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन होता है यानी शत्रु कितना ही प्रबल क्यों न हो वह पराजित होता है, तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता है।
सैकड़ों साल पुराना है मंदिर
मां बगलामुखी की चमत्कारी और सिद्ध प्रतिमा की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है। जनश्रुति है की यह मूर्ति स्वयंसिद्घ स्थापित है। काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है। कहा जाता है की महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने के लिए कहा था। उस समय सम्राट युधिष्ठिर ने लक्ष्मणा नदी, जो अब लखुंदर नदी कहलाती है के किनारे पर बैठकर मां बगलामुखी की आराधना की थी और कौरवों पर विजय प्राप्त की थी।
मां पितांबरा को पितवर्णी वस्तुएं की जाती है समर्पित
माता पीतवर्णी है इसलिए माता को पीली चीजों को समर्पित किया जाता है। पीले वस्त्र, पीले फूल, पीले मिष्ठान्न आदि। इस मंदिर परिसर में माता बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती भी विराजमान हैं। मां बगलामुखी के इस परिसर में बिल्व पत्र, चंपा, सफेद आंकड़ा, आंवला, नीम एवं पीपल के वृक्ष एक साथ स्थित हैं।