
Hartalika Teej 2020 Date Time: खंड सौभाग्यवती का पर्व हरतालिका तीज 21अगस्त, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए 24 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। मान्यताओं के अनुसार, अखंड सौभाग्य और मनचाहे वर के लिए तीजा व्रत यानि हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की हस्त नक्षत्र युक्त तृतीया तिथि को हरितालिका तीज का व्रत किया जाता है। इस व्रत को कुंवारी कन्याएं अपने लिए मनचाहा पति पाने और विवाहित महिलाएं अखंड (पति की लम्बी आयु के लिये) सौभाग्य पाने के लिए करती है। इस व्रत में सायं के पश्चात् चार प्रहर की पूजा करते हुए रात भर, भजन-कीर्तन, जागरण किया जाता है।
पंडित अरविंद अवस्थी ने बताया कि हरतालिका तीज व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है। यह बेहद ही कठिन व्रत होता है। इसे दो प्रकार से किया जाता है। एक निर्जला और दूसरा फलहारी। निर्जला व्रत में पानी नहीं पीते हैं और न ही अन्ना या फल ग्रहण करते हैं वहीं फलाहारी व्रत रखने वाले लोग व्रत के दौरान जल पी सकते हैं और फल का सेवन करते हैं।
Hartalika Teej 2020 Subh Muhurat
इस वर्ष तीज 21 अगस्त को है। इस बार हरितालिका पूजा मुहूर्त सुबह 5.54 बजे से 8.30 बजे तक है प्रदोषकाल शाम 6.54 से रात 9 बजे तक बताया गया है।
Hartalika Teej 2020 Puja Vidhi
दूसरे दिन सुबह सूर्योदय के समय व्रत समाप्त होता है। तब महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं और अन्न-जल ग्रहण करती हैं। इस दिन शिव पार्वती जी पूजा की जाती है। कहीं-कहीं बालू के भगवान शंकर व माता पार्वती की मूर्ति बनाकर पूजन की जाती है। एक चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश, पार्वती एवं उनकी सहेली की प्रतिमा बनाई जाती है। पूजन-पाठ के बाद महिलाएं रात भर भजन-कीर्तन करती है । हर प्रहर को इनकी पूजा करते हुए बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण करने चाहिए और आरती करनी चाहिए।
Hartalika Teej 2020 Katha
हरतालिका तीज के व्रत की कथा भगवान शिव और पार्वती से जुड़ी है। धर्म ग्रंथों में लिखा है कि अपने पिता द्वारा कराए गए यज्ञ में जब शिवजी का अपमान हुआ तो पार्वती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया। अगले जन्म में उन्होंने राजा हिमालय की बेटी के रूप में जन्म लिया और भगवान शंकर को मन ही मन पति मान लिया था। पिता ने पार्वती के विवाह के लिए नारदजी से सलाह ली तो उन्होंने भगवान विष्णु का नाम आगे बढ़ा दिया। इस विवाह को रोकने के लिए पार्वतीजी की सहेलियों ने उनका हरण कर लिया और जंगल में ले गईं। इसीलिए इस दिन को हरतालिका कहा जाता है। इसके बाद पार्वतीजी ने भगवान शिव की तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया और अपने पति के रूप में प्राप्त किया।