Hanuman Janmotsav 2020: महाबली हनुमान को विशेष शक्तियों का स्वामी और काफी बलशाली माना जाता है। बजरंगबली चिरंजीवी थे अर्थात वह ब्रह्मांड में अभी भी विचरण कर रहे हैं। अपने स्वामी श्रीराम के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले हनुमान अपने भक्तों के कष्टों का हरण करते हैं, दुर्भाग्य को दूर करते हैं, विपत्ति का नाश करते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। बजरंगबली का आशीर्वाद हमेशा अपने भक्तों के साथ होता है इसलिए उनके भक्तों पर कभी दुखों का साया नहीं मंडराता है।
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थात इन आठ लोगों अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि का स्मरण प्रात:काल करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।
विलंका रामायण में मिलता है हनुमान के मृत्युदंड का वर्णन
बजरंगबली को अमरता का वरदान प्राप्त है। उनको भगवान भोलेनाथ का अंशावतार और चिरंजीवी भी कहा गया है। मान्यता है कि हनुमानजी को श्रीराम ने सृष्टि के अंत तक पृथ्वी पर सशरीर रहने का वरदान दिया है। लेकिन इसके विपरीत उड़िया भाषा की विलंका रामायण में हनुमानजी के संबंध में एक अदभुत कथानक का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार हनुमानजी का देहवसान हुआ था और छह महीने बाद वो फिर जीवित हो गए थे।
विलंका रामायण की कथा के अनुसार एक बार श्रीराम विलंका राक्षसराज सहस्शिरा के वध के लिए गए हुए थे। कई दिन बीत गए, लेकिन जब श्रीराम वापस नहीं लौटे तो देवी सीता काफी परेशान हुई। उन्होंने हनुमानजी को श्रीराम की खोजखबर लेने के लिए भेजा। हनुमानजी अपने स्वामी की खोजने के लिए विलंका पहुंच गए। वहां पहुंचकर जब उन्होंने राक्षसराज सहस्शिरा की बैचेनी और परेशानी को देखा तो वह उसके आवभाव से समझ गए की श्रीराम विलंका में ही है, लेकिन इसके बावजूद तमाम कोशिश करने पर भी वह श्रीराम का पता नहीं लगा पाए। हनुमानजी ने राजभवन को छोड़ा और नगर में प्रभु श्रीराम को तलाशने लगे।
विष पीने से हनुमान का हुआ निधन
राक्षसराज सहस्शिरा ने विलंका के प्रमुख द्वार पर एक ग्रामदेवी को नियुक्त कर रखा था, जो शत्रुओं को पहचान कर उनका काम तमाम कर देती थी। इसके अलावा नगर के उत्तर द्वार पर विष से भरा सरोवर था। दक्षिण भाग में एक तालाब था। जब भी कोई व्यक्ति मित्रभाव रखकर किले के अंदर जाता तो वह उस सरोवर का जल पीता था और आसानी से दुर्ग में चला जाता था। लेकिन दुश्मनी रखकर यदि कोई प्रवेश करने की कोशिश करता तो उस सरोवर का जल पीने से उसकी मृत्यु हो जाती थी।
हनुमानजी श्रीराम की तलाश में नगर के उत्तरी द्वार पर पहुंचे और अपने स्वामी के संबंध में सोचने लगे। ऐसे में उनकी मुलाकात द्वार की रक्षा कर रही ग्रामदेवी से हो गई। ग्रामदेवी ने तुरंत पहचान लिया कि यह श्रीराम भक्त हनुमान है। ग्रामदेवी हनुमानजी के गले में जाकर बैठ गई जिससे उनका गला सूखने लगा। प्यास लगने पर तुरंत पवनपुत्र ने सरोवर के जल को पीया। जल के पीते ही उनके पूरे शरीर में जहर फैल गया और इससे उनकी मृत्यु हो गई।
देवताओं ने अमृतवर्षा से किया हनुमान को जीवित
लंबे समय तक जब श्रीराम और हनुमान दोनों का पता नहीं चला तो समस्त देवताओं ने पवनदेव से पूछा की आपका बलशाली पुत्र कहां पर है। पवनदेव भी परेशान हुए और सभी देवताओं ने हनुमानजी को खोजना शुरू किया। तब बृहस्पतिदेव ने बताया कि हनुमानजी का विलंका में देहवसान हो चुका है। इससे पवनदेव काफी दुखी हुए और उन्होंने बहना बंद कर दिया।
सृष्टि में वायु के थम जाने से सभी प्रणियों के जीवन पर संकट मंडराने लगा। पृथ्वी के सभी जीवों का जीवन संकट में देखते हुए देवताओं ने पवनदेव से विनती कर कहा कि वह उनके पुत्र को जीवित कर देंगे, लेकिन वह क्रोध और निराशा का त्याग कर दें। इसके बाद सभी देवता विलंका गए और और अमृतवर्षा के साथ संजीवनी मंत्रों से हनुमानजी को जीवित किया। इस तरह छह माह तक मृत रहने के बाद बजरंगबली को नया जीवन मिला था।
श्रीराम ने दिया था अमरता का वरदान
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने हनुमानजी को आशीर्वाद दिया था कि संसार में जब तक मेरी रामकथा प्रचलन में रहेगी, हनुमान तुम्हारी कीर्ति भी अमर रहेगी और तुम भी अमर रहोगे। माता सीता ने भी हनुमान को वरदान दिया था कि हनुमान तुम जहां कहीं भी रहोगे तुम्हे सभी तरह की सुविधाएं प्राप्त होगी। इसी तरह देवराज इंद्र ने बजरंगबली को इच्छामृत्यु का आशीर्वाद दिया था और कहा था कि तुम्हारी मृत्यु तब तक नहीं होगी जब तक तुम स्वयं मृत्यु की इच्छा नहीं करोगे।