Garud in Ramayan: कद्रू और विनता नाम की दक्ष प्रजापति की दो बेटियां थी। दक्ष प्रजापति की इन दोनों बेटियों का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ था। कश्यप ऋषि से पत्नी कद्रू ने एक हजार नाग पुत्र मांगे जबकि विनता ने केवल दो तेजस्वी पुत्रों का वर मांगा। कश्यप ऋषि के वरदान से कद्रू ने एक हजार अंडे और विनता ने दो अंडे दिए। कद्रू के अंडों के फूटने पर उसको एक हजार नाग पुत्रों की प्राप्ति हुई। दूसरी पत्नी विनता ने अंडे न फूटने पर उतावलेपन में एक अंडे को फोड़ दिया। इस अंडे से निकलने वाले बच्चे का ऊपरी अंग पूर्ण रूप से विकसित हो चुका था, लेकिन नीचे के अंग आकार नहीं ले पाए थे। इसलिए इस अंडे से जन्मे बच्चे ने अपनी माता को श्राप दे दिया कि तुमने कच्चे अंडे को फोड़ा है इसलिए तुम पाँच सौ सालों तक अपनी सौत की दासी बनकर रहोगी। तुम दूसरे अंडे का ख्याल रखना, उसमें से एक अत्यन्त तेजस्वी बालक जन्म लेगा, जो तुम्हे इस श्राप से मुक्ति दिलाएगा। यह कहने के बाद अरुण नामक वह बालक आकाश में उड़ गया और सूर्य के रथ का सारथी बन गया।
इस तरह विनता बनी दासी
एक दिन कद्रू और विनता ने समुद्र मन्थन से निकले हुए उच्चैश्रवा घोड़े को देखा। कद्रू ने घोड़े की पूँछ को काली बताया, जबकि विनता ने उसको सफेद बताया। इस बात पर दोनों में शर्त लगी कि जिसकी बात गलत होगी उसको दूसरे की दासी बनना पडे़गा। कद्रू ने चुपके से अपने सर्पपुत्रों को उस पूँछ से लिपट जाने को कहा, जिससे पूंछ काली दिखाई पड़े। विनता ने पूंछ देखकर हार मान ली और वह कद्रू की दासी बन गई। समय पूरा होने पर विनता के दूसरे अंडे से महातेजस्वी गरुड़ का जन्म हुआ।
गरुड़ ने दिलवाई माता को दासत्व से मुक्ति
एक दिन कद्रू ने गरुड़ से कहा कि तुम दासी पुत्र हो इसलिये मेरे पुत्रों को घुमाने ले जाओ। गरुड़ ने उस समय अपनी सौतेली माता की आज्ञा मान ली, लेकिन उसको बहुत गुस्सा आया। सांपों को घुमाते वक्त गरुड़ ने अपनी माता को दासता से मुक्त कर देने के लिये कहा। इस पर सांपों ने कहा कि यदि तुम हमको अमृत लाकर दे दोगे तो हम तुम्हारी माता को दासत्व से मुक्त कर देंगे। गरुड़ ने देवराज इन्द्र और दूसरे देवताओं को पराजित कर अमृत कलश उनसे छीन लिया। गरुड़ के शौर्य से प्रभावित होकर इन्द्र ने गरुड़ से मित्रता कर ली। उसी समय गरुड़ की भेंट भगवान विष्णु से हो गई। श्रीहरी ने गरुड़ से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा। तब गरुड़ से उनसे सदैव उनकी ध्वजा में बने रहने का वर मांगा और इसके साथ ही भगवान विष्णु के वाहन भी बन गए।
इसके बाद गरुड़ ने सांपों को अमृत कलश सौंपकर इपना माता को दास्ता से मुक्ति दिलवाई। तभी सांप अमृत कलश मिल जाने पर उसको कुशासन पर रखकर पवित्र स्नान करने के लिए चले गए। इस बीच मौका देखकर इन्द्र ने अमृत कलश को चुरा लिया।
श्रीराम को दिलवाई नागपाश से मुक्ति
श्रीराम -रावण युद्ध में जब रावण के पुत्र मेघनाद ने रणभूमि में श्रीराम को नागपाश से बाँध दिया था। तब देवर्षि नारद के कहने पर गरुड़ ने नागपाश के समस्त नागों का भक्षण कर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त करवाया था। लेकिन श्रीराम के नागपाश में बँध जाने के कारण गरुड़ को श्रीराम के परमब्रह्म होने पर संदेह उत्पन्न हो गया। ऐसे समय नारदजी ने गरुड़ को उनका संदेह दूर करने के लिए ब्रह्मा के पास भेजा। ब्रह्माजी ने गरुड़ से कहा कि तुम्हारा संदेह महादेव दूर कर सकते हैं। भोलेनाथ ने गरुड़ का संदेह दूर करने के लिए उनको काकभुशुण्डि जी के पास भेज दिया। काकभुशुण्डि ने गरुड़ को श्रीराम के चरित्र की पावन कथा सुना कर उनका संदेह दूर किया।