Durga Puja 2022: देशभर में शारदीय नवरात्रि का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। बंगाल में इसकी रौनक देखते ही बनती है। यहां नवरात्रि का पर्व दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बंगाल में देवी दुर्गा का मायका है और देवी नवरात्रि के अंतिम 4 दिनों में यहीं निवास करती हैं। इसी भावना के साथ लोग देवी का स्वागत करते हैं। साथ ही उनकी भक्ति में डूब जाते हैं। दुर्गा पूजा का पर्व नवरात्रि की षष्ठी तिथि यानी छठे दिन से शुरू होता है। विजयादशमी पर दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के साथ इसका समापन होता है।
यह दुर्गा पूजा का पहला दिन होता है। इस बार ये तिथि 1 अक्टूबर शनिवार को है। इस दिन मंत्रों के माध्यम से देवी को जगाया जाता है। बिल्वपत्र के पेड़ की पूजा कर देवी को आने के लिए आमंत्रित किया जाता है। ये पूजा घट स्थापना की तरह सुबह जल्दी की जाती है। दुर्गा पूजा के पहले दिन कल्पारम्भ भी कहते हैं। इसका अर्थ होता है सृष्टि की शुरुआत का पहला दिन।
ये दुर्गा पूजा का दूसरा दिन होता है जो नवरात्रि की सप्तमी तिथि पर मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 2 अक्टूबर रविवार को है। इस दिन नौ तरह के पेड़ की पत्तियों को मिलाकर एक गुच्छा बनाया जाता है। इसका उपयोग देवी की पूजा में किया जाता है। इसे नवपत्रिका पूजा कहते हैं। इनमें केला, हल्दी, दारू, बिल्व पत्र, अनार, अशोक, चावल और अमलतास के पत्ते होते हैं। इन दिन लड़कियां और महिलाएं पीले कपड़े पहनकर पांडालों में आती हैं।
नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि पर एक खास तरह का नृत्य दुर्गा पंडालों में किया जाता है। इसे धुनुची नृत्य कहा जाता है। इसे शक्ति नृत्य भी कहा जाता है। धुनुची में नारियल की जटा, जलते कोयले और हवन सामग्री रखकर नृत्य किया जाता है। साथ ही मां की आरती भी इसी से की जाती है। ये नृत्य और आरती बहुत ही खास तरीके से की जाती है।
ये दुर्गा पूजा का अंतिम दिन होता है। सिंदूर खेला उत्सव विजयादशमी पर मनाया जाता है। इस बात ये तिथि 5 अक्टूबर बुधवार को है। इस दिन महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और ये कामना करती हैं कि उनकी सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन देवी मां की प्रतिमाओं का विसर्जन भी किया जाता है। इसके बाद सभी लोग एक-दूसरे को घर जाकर शुभकामनाएं और मिठाइयां देते हैं।
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