Chaitra Navratri Kalash Sthapana Samagri: इस बार चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से शुरू हो रही है। नवरात्रि के इन नौ दिनों में भक्त मां दुर्गा के नौं स्वरूपों की पूजा करते हैं और उनके निमित्त व्रत रखते हैं। नौं दिनों तक पूरी श्रद्धा-भक्ति और विधि-विधान से पूजा करने पर माता रानी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के समय में भगवती देवी दुर्गा मां धरती पर आती हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। इसलिए उनकी पूजा-पाठ बड़े विधि-विधान से की जानी चाहिए। मां दुर्गा की पूजा में उपयोग में आने वाली सामग्री पहले से ही इकट्ठा कर लें। ताकि नौ दिन आपको पूजा में किसी प्रकार की अड़चन ना आए। तो आइए जानते हैं नवरात्रि में कलश स्थापना और पूजा की सामग्री-
नवदुर्गा के श्रृंगार का सामान
नवरात्रि के मौके पर माता रानी की पूजा के साथ-साथ उनका पूरा श्रृंगार किया जाता है। उनकी पूजा के लिए मां दुर्गा की तस्वीर या प्रतिमा ली जाती है। इसके अलावा श्रृंगार के लिए कुमकुम या बिंदी, सिंदूर, काजल, मेहंदी, गजरा, लाल रंग का जोड़ा, मांग टीका, नथ, कान के झुमके, मंगल सूत्र, बाजूबंद, चूड़ियां, कमरबंद, बिछुआ, पायल आदि।
कलश स्थापना की सामग्री
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना के लिए थोड़ी सी मिट्टी, मिट्टी का घड़ा, मिट्टी का ढक्कन, कलावा, नारियल, गंगाजल, लाल रंग का कपड़ा, एक मिट्टी का दीपक, अक्षत, हल्दी-तिलक, पान के पत्ते, जौ, फूल-माला, भोग के लिए फल और मिठाई, रंगोली के लिए आटा, मिट्टी की कटोरी के ऊपर रखने के लिए चावल या गेहूं। इसके साथ ही मां दुर्गा की तस्वीर की स्थापना के लिए चौकी, चौकी पर बिछाने के लिए लाल या पीला कपड़ा, लाल चुनरी लाएं।
कैसे करें कलश स्थापना?
नवरात्रि के पहले दिन सुबह स्नान कर मंदिर की सफाई करें या फिर जमीन पर माता की चौकी लगाएं। इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेश जी का नाम लें और मां दुर्गा के नाम की अखंड ज्योत जलाएं और मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें। मिट्टी में जौ के बीच डाल दें। इसके बाद कलश या लोटे पर मौली बांधें और उस पर स्वास्तिक बनाएं।
लोटे (कलश) पर कुछ बूंद गंगाजल डालकर उसमें दूब, साबुत सुपारी, अक्षत और सवा रुपया डाल दें और फिर लोटे (कलश) के ऊपर आम या अशोक 5 पत्ते लगाएं और नारियल को लाल चुनरी में लपेटकर रखें। अब इस कलश को जौ वाले मिट्टी के पात्र के बीचो बीच रख दें और फिर माता के सामने व्रत का संकल्प लें और अपना व्रत शुरू करें।