Baba Baidyanath Dham । हिंदू धर्म में 12 ज्योतिर्लिंगों का काफी महत्व बताया गया है। इन 12 ज्योतिर्लिंगों में से झारखंड के देवघर में स्थित तीर्थ स्थल बैद्यनाथ धाम को 9वां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग के साथ एक एक शक्तिपीठ भी है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि बैद्यनाथ धाम की स्थापना खुद भगवान विष्णु ने की थी। साथ ही यह भी मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तों की इच्छा पूर्ण होती है। यही कारण है कि बैद्यनाथ धाम में स्थापित किए गए मंदिर को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है।
बाबा बैद्यनाथ धाम के शीर्ष पर स्थापित है पंचशूल
आमतौर पर हम देखते हैं कि हर शिव मंदिर में शिखर पर एक त्रिशूल लगा होता है, लेकिन देश में बैद्यनाथ धाम मंदिर एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां भगवान शिव के मंदिर के शिखर पर त्रिशूल के स्थान पर पंचशूल लगा होता है। देवघर के बैद्यनाथ मंदिर परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण और अन्य सभी मंदिरों में पंचशूल लगे हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार पंचशूल को सुरक्षा कवच माना गया है। ये महाशिवरात्रि से दो दिन पहने उतारे जाते हैं और महाशिवरात्रि से एक दिन पहले विधि-विधान के साथ इन सभी पंचशूल की पूजा की जाती है और फिर वापस मंदिर शिखर पर स्थापित कर दिया जाता है। इस दौरान भगवान शिव और माता पार्वती के गठबंधन को भी हटा दिया जाता है।
पंचशूल को लेकर ये है मान्यताएं
बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर पंचशूल को लेकर मान्यता है कि त्रेता युग में रावण की लंका पुरी के प्रवेश द्वार पर सुरक्षा कवच के रूप में पंचशूल भी स्थापित किया गया था और सिर्फ रावण ही पंचशूल यानी सुरक्षा कवच को भेदना जानता था। भगवान राम के लिए भी पंचशूल के भेद पाना असंभव था, लेकिन विभीषण ने जब इसका रहस्य उजागर कर दिया तो भगवान श्री राम और उनकी सेना ने लंका में प्रवेश किया। मान्यता है कि पंचशूल के कारण मंदिर पर आज तक कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई है।
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