धर्म डेस्क, इंदौर (Premanand Maharaj Ji)। हिंदू धर्म में चरणामृत को पवित्र माना जाता है। जिस जल से देवताओं का अभिषेक किया जाता है, उसे बाद में चरणामृत के रूप में ग्रहण किया जाता है। तांबे के पात्र में भगवान के चरणों के जल को लेकर उसमें तुलसी का पत्ता मिलाया जाता है और इसके वितरित किया जाता है।
हिंदू ग्रंथों में चरणामृत का उल्लेख किया गया है। प्रसिद्ध कथावाचक प्रेमानंद महाराज ने भी अपने प्रवचन में चरणामृत का महत्व बताया है और इसके चमत्कारिक फायदे बताए हैं।
प्रेमानंद महाराज ने कथा के दौरान बताया कि जो रोज चरणामृत पीता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता। यानी उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। अगर किसी को कोई रोग है तो चरणामृत पीने से यह पीड़ा नहीं पहुंचाता।
प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि चरणामृत पीने से अकाल मृत्यु नहीं होती। इसमें बहुत बड़ा सामर्थ्य है। चरणामृत पीने वालों को कोई रोग भी परास्त नहीं कर सकता है।
हिंदू शास्त्रों में कुछ मंत्रों के माध्यम से भी चरणामृत का महत्व बताया गया है। इसमें कहा गया है कि चरणामृत पीने वालों को अकाल मृत्यु नहीं आती है।
अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम्
श्री कृष्ण पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।
भगवान के चरणों का जल ही चरणामृत कहलाता है। शास्त्रों में चरणामृत को औषधि के समान बताया गया है। इसे बनाने के लिए एक तांबे के पात्र में भगवान के चरणों के जल को लेकर उसमें तुलसी का पत्ता और तिल मिलाए जाते है। तांबे और तुलसी के औषधीय गुण जल में आने से वह फायदेमंद हो जाता है।
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