Jaya Ekadashi 2021: माघ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी (Jaya Ekadashi ) मनाई जाती है। जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और इसे श्रेष्ठतम व्रतों में से एक माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से दुख खत्म हो जाते हैं और सभी सुखों की प्राप्ति होती है। जया एकादशी पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है।
जया एकादशी शुभ मुहूर्त (Jaya Ekadashi Shubh Muhurat)
जया एकादशी मंगलवार, फरवरी 23, 2021 को
एकादशी तिथि प्रारम्भ – फरवरी 22 , 2021 को 17:16 बजे
एकादशी तिथि समाप्त – फरवरी 23, 2021 को 18:05 बजे
जया एकादशी पर भूलकर न करें ये काम
- जया एकादशी के दिन न तो चने और न ही चने के आटे से बनी चीजें खानी चाहिए।
- इस दिन शहद का सेवन करने से भी बचना चाहिए।
- पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- भगवान विष्णु की पूजा में धूप, फल, फूल, दीप, पंचामृत आदि का प्रयोग करें।
- द्वेष भावना या क्रोध को मन में न लाएं। साथ ही दूसरों की निंदा करने से भी बचना चाहिए।
जया एकादशी कथा
जया एकादशी की धार्मिक कथा के अनुसार नंदन वन में एक बार उत्सव चल रहा था। इसमें सभी देवता, सिद्ध संत मौजूद थे, उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं। देव सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था। इसी बीच पुष्यवती की नजर जैसे ही माल्यवान पर पड़ी तो वह उस पर मोहित हो गई और सभी मर्यादा भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान आकर्षित हो। माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सब कुछ खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया और सुर ताल बिगाड़ बैठा।
तब इन्द्र पुष्पवती और माल्यवान के अमर्यादित कार्य पर क्रोधित हो गए और दोनों को श्राप दे दिया कि आप स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर निवास करें। तब श्राप के प्रभाव से दोनों श्राप पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे, उस दिन केवल फलाहार पर रहे और रात में ठंड के कारण मौत हो गई।
अनजाने में उनसे जया एकादशी व्रत हो जाने के कारण उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी। अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गयी और स्वर्ग लोक में फिर से उन्हें सम्मानित स्थान मिल गया। देवराज ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गये और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा तो माल्यवान के कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं। इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है आप स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें।