अध्यात्म डेस्क, नईदुनिया। हिंदू धर्म में कुबेर को धन के देवता और यक्षों के राजा के रूप में पूजा जाता है। कुबेर को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है और जिन पर कुबेर की कृपा होती है, उनके घर में आर्थिक तंगी नहीं आती।कुबेर भगवान शिव के परम भक्त हैं और नौ निधियों का अधिपति भी माने जाते हैं। कुबेर का पूजन करने से न केवल धन की वृद्धि होती है, बल्कि उनके आशीर्वाद से समृद्धि और वैभव भी प्राप्त होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुबेर लंकापति रावण के सौतेले भाई थे। उनके पिता महर्षि विश्रवा और माता देववर्णिणी थीं। कुबेर देव को उत्तर दिशा के दिक्पाल तथा इस दुनिया के रक्षक (लोकपाल) के रूप में सम्मानित किया जाता है। कुबेर को देवताओं के धन का खजांची बनाया गया था।
कुबेर को प्रसन्न करने के लिए नियमित पूजा अर्चना करना आवश्यक है। विशेषकर दीवाली से पहले धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी के साथ कुबेर भगवान की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। कुबेर का निवास वट-वृक्ष में माना जाता है, जिससे इस वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है।
वास्तु के अनुसार, उत्तर दिशा भगवान कुबेर की दिशा मानी जाती है। कुबेर की मूर्ति को हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा में रखना चाहिए, और उसका मुख उत्तर दिशा में होना चाहिए। मूर्ति की जगह साफ और अव्यवस्था रहित होनी चाहिए। पूजा करते समय सकारात्मक मानसिकता बनाए रखें। कुबेर भगवान को पीले रंग की चीज़ें पसंद आती हैं।
क्रासुला का पौधा भगवान कुबेर का पसंदीदा माना जाता है। इसे सही दिशा में लगाने से धन की वर्षा के योग बनते हैं। धातु का कछुआ रखने से परिवार की आय में वृद्धि होती है, और इसे हमेशा उत्तर दिशा में रखना चाहिए। इसके अलावा, तिजोरी का द्वार उत्तर दिशा में होना चाहिए, जिससे धन के प्रवाह में वृद्धि होती है।
कुबेर देव के 108 नामों का जाप करने से आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है। इसके अतिरिक्त, वास्तु शास्त्र के अनुसार 'ॐ लक्ष्मी कुबेराय नमः' या 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः' मंत्र का जाप करने से धन और धनधान्य की प्राप्ति होती है। वट वृक्ष पर जल अर्पित करते हैं, जो कुबेर की कृपा प्राप्त करने का एक शुभ उपाय माना जाता है।
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