धर्म डेस्क, इंदौर Jagannath Prabhi ki Kahani। भगवान अपने भक्तों को बचाने के लिए किसी भी रूप में आते हैं। इसको लेकर कई पौराणिक कथाएं भी मिलती हैं। एक ऐसी ही पौराणिक कथा आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जहां अपने भक्त को बचाने के लिए भगवान जगन्नाथ खुद मंदिर से बाहर आ गए थे।
कथा वाचक इंद्रेश उपाध्याय के अनुसार, एक समय काशी में बहुत बड़े विद्वान हुआ करते थे। वे जहां भी जाते अन्य विद्वानों को शास्त्रार्थ की चुनौती देते थे। इसी बीच एक बार उन्हें काशी के किसी विद्वान ने जगन्नाथ पुरी में रहने वाले माधव दास को शास्त्रार्थ में हराने की चुनौती दे डाली। साथ ही कहा कि हराने के बाद भोज पत्र में उनसे लिखवा कर लाना कि माधवदास तुमसे हार गए और नीचे उनका हस्ताक्षर होना चाहिए।
कथा वाचक इंद्रेश उपाध्याय बताते हैं कि इस चुनौती के बाद वह विद्वान माधवदास से शास्त्रार्थ के लिए काशी से पैदल चलकर जगन्नाथपुरी पहुंच गए। माधव दास ने जैसे देखा कोई परम विद्वान आया है, तो उन्होंने तुरंत दंडवत प्रणाम किया। इसके बाद विद्वान ने माधव दास को शास्त्रार्थ की चुनौती थी। माधव दास ने उनसे कहा कि आप शास्त्रार्थ न करें, मैं पहले ही हार चुका है।
इसके बाद विद्वान ने हारने की बाद भोजपत्र पर लिखने की बात कही। विद्वान के कहे अनुसार माधवदास ने भोजपत्र पर लिखकर दे दिया कि वे विद्वान से हार गए। आज के बाद वे कभी भी जगन्नाथपुरी आएंगे तो उनकी पूरी सेवा की जिम्मेदारी मेरी होगी।
जब विद्वान ने यह भोजपत्र काशी के दूसरे विद्वान को दिखाया तो भोजपत्र में पूरा लेख ही बदल गया। उसमें लिखा था, ये अमुक नाम के व्यक्ति काशी से आज जगन्नाथपुरी आये। उन्होंने आकर के शास्त्रार्थ किया और शास्त्रार्थ में मुझसे बुरी तरह हार गए। आज के बाद कभी भी जगन्नाथपुरी आएंगे तो मुझे प्रणाम करेंगे और मेरी सेवा करेंगे। काशी से मेरे लिए बहुत सारी सेवा लेकर आएंगे।
यह पढ़ने के बाद विद्वान दोबारा माधवदास के पास पहुंचे और शास्त्रार्थ की चुनौती दी, लेकिन माधव दास ने फिर से अपनी हार स्वीकार कर ली। तब विद्वान ने उनसे कहा कि अब तुम्हे गधे पर बैठकर और मुंह पर कालिख पोतकर पूरे क्षेत्र का चक्कर लगाना होगा और कहना होगा मैं विद्वान से हार गया।
माधवदास ने विद्वान की इस चुनौती को भी स्वीकार कर लिया और कहा कि मैं जगन्नाथ भगवान के दर्शन करने जा रहा हूं, तब तक आप गधे का प्रबंध कर लीजिए और इतना कहकर वे मंदिर चले गए और विद्वान गधे की तलाश में निकल गए।
जब माधव दास मंदिर में थे, तब भगवान जगन्नाथ उनका रूप धारण कर मंदिर से बाहर आए और विद्वान को ही शास्त्रार्थ की चुनौती दी। इसके बाद विद्वान को बुरी तरह हराकर दोबारा मंदिर लौट गए। साथ ही विद्वान से कहा कि अब वे गधे पर बैठकर घूमें और हल्ला करें कि वे माधवदास से शास्त्रार्थ में हार गए हैं।
जब माधवदास मंदिर से बाहर आए तो देखा कि विद्वान गधे पर घूम रहे हैं, जिसे देख उन्हें हैरानी हुई। साथ ही यह समझने में भी देर न लगी कि यह काम भगवान जगन्नाथ का है। इधर, माधवदास को देखते ही उस विद्वान ने भी उनके हाथ जोड़ लिए और दोबारा काशी लौट गए।