Shree Ram: भगवान श्रीराम भगवान श्रीहरी के अवतार थे और धरती पर उनका अवतरण दुष्टों को दंड देने और अपने भक्तों की रक्षा के लिए हुआ था। भगवान श्रीराम के साथ वनवास से लेकर और उसके बाद कई प्रमुख पात्र जुड़ते रहे और उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए। रामायण के एस ऐसे ही प्रमुख पात्र हनुमान थे, जो श्रीराम के अनन्य भक्त और उनकी परछाई के समान थे।श्रीराम से जुड़ने के बाद हनुमानजी ने उनका हर कदम पर साथ दिया और उनके साथ साए की तरह रहे थे।
श्रीराम ने अंगुठी के बहाने हनुमान को किया दूर
श्रीराम और हनुमान से जुड़ी एक कथा भगवान श्रीराम के स्वर्गारोहण की है। मान्यता है कि बजरंगबली को यदि इस बात का जरा भी अहसास हो जाता कि कालदेव विष्णु लोक से श्री राम को लेने के लिए अयोध्या आने वाले हैं तो वह उनको अयोध्या की सीमा में आने भी नहीं देते। क्योंकि श्रीराम और देवी सीता की रक्षा का जिम्मा उन्होंने संभाल रखा था। श्रीराम को कालदेव के अयोध्या आने की जानकारी थी।
इसलिए उन्होंने हनुमानजी को मुख्य द्वार से दूर रखने का एक तरीका निकाला। प्रभु श्रीराम ने अपनी एक अंगूठी महल के फर्श में आई एक दरार में डाल दी और हनुमान को उसको बाहर निकालने का आदेश दिया। हनुमानजी ने श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हुए तुरंत लघु रूप धारण किया और दरार में अंगूठी को खोजने के लिए प्रवेश कर गए।
हनुमानजी पहुंचे नागलोक
जैसे ही हनुमानजी ने उस दरार के अंदर प्रवेश किया तब उनको पता चला कि यह कोई सामान्य दरार नहीं बल्कि एक विशाल सुरंग है। वह उस सुरंग में जाकर नागों के राजा वासुकि से मिले। राजा वासुकि हनुमानजी को नाग-लोक के मध्य क्षेत्र में ले गए और वहां पर अंगूठियों से भरा एक विशाल पहाड़ दिखाते हुए बोले कि यहां आपको आपकी अंगूठी मिल जाएगी। उस अंगुठियों के पर्वत को देख हनुमानजी परेशान हो गए और सोचने लगे कि इस विशाल पहाड़ में से श्री राम की अंगूठी खोजना तो कूड़े के ढेर से सूई खोजने के समान है।
लेकिन जैसे ही बजरंगबली ने पहली अंगूठी उठाई तो वह श्री राम की ही थी। लेकिन उनको आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने दूसरी अंगूठी उठाई, क्योंकि वह भी भगवान श्रीराम की ही थी। यह देख हनुमानजी को समझ नही आया कि उनके साथ .यह क्या हो रहा है। हनुमानजी की दुविधा देखकर वासुकि मुस्कुराए और उन्हें कुछ समझाने लगे।
राजा वासुकि ने दिया हनुमानजी को ज्ञान
वासुकी बोले कि पृथ्वी लोक एक ऐसा लोक है जहां जो भी आता है उसको एक दिन वापस लौटना ही पड़ता है। उसके इस लोक से वापस जाने का साधन कुछ भी हो सकता है। ठीक इसी तरह भगवान श्रीराम भी पृथ्वी लोक को छोड़ एक दिन विष्णु लोक वापस आवश्य जाएंगे। वासुकि की यह बात सुनकर भगवान हनुमान को यह समझने में देर नहीं लगी कि उनका अंगूठी ढूंढ़ने के लिए आना और उसके बाद नाग-लोक पहुंचना, यह सब श्री राम का ही सोचा-समझा निर्णय था।
बजरंगबली को इस बात का अहसास हो गया कि अंगुठी के बहाने उनको नागलोक भेजना उनको कर्तव्य से भटकाना था। जिससे कि कालदेव अयोध्या में प्रवेश कर सके और श्रीराम को उनके पृथ्वी पर जीवन की समाप्ति की सूचना दे सके। हनुमान को यह भी अहसास हो गया कि जब वो अयोध्या लौटेंगे तो श्रीराम नहीं होंगे।