संत भी न रोक सके चंचल मन की शरारत
किंतु सतत् अभ्यास जड़ता के रूप में न हो जाए, इसलिए इसमें चैतन्यता बनाए रखनी चाहिए।
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Publish Date: Thu, 05 Nov 2015 09:57:20 AM (IST)
Updated Date: Sat, 07 Nov 2015 10:02:24 AM (IST)
एक संत थे, बड़े तपस्वी और बहुत संयमी। लोग उनके धैर्य की प्रशंसा करते थे। एक दिन उनके मन में विचार आया कि उन्होंने खान-पान पर तो संयम कर लिया, लेकिन दूध पीना उन्हें बहुत प्रिय था। उसे त्याग करने के बारे में मन बनाया। इस तरह संत ने दूध पीना छोड़ दिया।
सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने इस व्रत का कड़े नियम से पालन किया। ऐसा करते हुए कई साल बीत गए। एक दिन संत के मन में विचार आया कि आज दूध पिया जाए। फिर तो न चाहते हुए भी उनकी दूध पीने की इच्छा प्रबल हो गई। तभी उन्हें एक धनी व्यक्ति के यहां से भोजन का बुलावा आया। उन्होंने उस सेठ से कहा, आज सिर्फ मैं दूध पीना चाहूंगा।
संत ने कहा, मुझे अकेले को ही दूध पीना है फिर आप इतने घड़े क्यों ले आए? सेठजी ने कहा, महाराज आपने दूध पीना 40 साल से छोड़ रखा है, उस हिसाब से दूध के 40 बड़े घड़े आपके सामने हैं।
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संत, सेठजी की बातों को समझ गए। उन्होंने क्षमा मांगते हुए कहा, मैंने मन के टूटते संयम पर अब नियंत्रण पा लिया है।
संक्षेप में
मन किसी भी उम्र में विपरीत प्रभाव डाल देता है। इसके नियंत्रण का एक ही उपाय है। और वो है अभ्यास। किंतु सतत् अभ्यास जड़ता के रूप में न हो जाए, इसलिए इसमें चैतन्यता बनाए रखनी चाहिए।
मनुष्य का मन चंचल बच्चे की तरह होता है। वह कभी तो मान जाता है और कभी उछल कूद करने लगता है। अतः उसे नियंत्रित करने के नए-नए उपाय खोजने पड़ते हैं। जिस मनुष्य का मन नियंत्रण में रहता है। उसके निर्णय कभी गलत नहीं होते हैं।