By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Mon, 12 Sep 2022 11:21:34 AM (IST)
Updated Date: Mon, 12 Sep 2022 11:21:34 AM (IST)
Shankaracharya Selection Process। शारदा पीठ और द्वारका पीठ के मठाधीश शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया था। स्वामी स्वरूपानंद के निधन के बाद शारदा व द्वारका पीठ के लिए नए उत्तराधिकारी का चयन आ किया जा सकता है। दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज और दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज को नया शंकराचार्य चुना जा सकता है। आपको बता दें कि आदि शंकराचार्य ने ‘मठ मनाय’ ग्रंथ की रचना की थी, जिसमें उन्होंने 4 मठों की व्यवस्था में शंकराचार्य की उपाधि लेने के नियम, सिद्धांत और नियम के बारे में विस्तार से उल्लेख किया है। आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित इस ग्रंथ को ‘महानुशासन’ भी कहा जाता है। आदि शंकराचार्य ने इस ग्रंथ में 73 श्लोक लिखे हैं, जिसमें मठाधीश की चयन प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया गया है।
आदि शंकराचार्य ने की थी चार मठों की स्थापना
भारतवर्ष में मध्यकाल में जब बौद्ध धर्म तेजी से बढ़ने लगा था तो सनातन परंपरा पर गहरी चोट लगी थी और ऐसे समय में सनातन धर्म को एक बार फिर से जाग्रत करने के लिए आदि शंकराचार्य ने देश में चार मठों की स्थापना की थी। ये चार मठ उत्तर में बद्री धाम का ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रृंगेरी मठ, पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में स्थित गोवर्धन मठ और पश्चिम दिशा में द्वारका में स्थित शारदा मठ थे। 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित इन चारों मठों के मुखिया को मठाधीश कहा जाता है और उन्हें शंकराचार्य की उपाधि दी गई है।
शंकराचार्य के लिए जरूरी योग्यता
- शंकराचार्य की उपाधि धारण करने के लिए चरित्र सन्यासी होना चाहिए और एक ब्राह्मण होना चाहिए।
- शंकराचार्य बनने वाले संन्यासी को ही दंड भोगने वाला होना चाहिए और उसे विलासिता से दूर रहना चाहिए। सभी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए।
- शंकराचार्य का शरीर और मन से शुद्ध होना चाहिए।
- संन्यासी के लिए वाक्पटु होना आवश्यक है। शंकराचार्य का पद संभालने वाले संन्यासी में तर्क क्षमता होना चाहिए। उसे चारों वेदों और 6 वेदांगों का सर्वोच्च विद्वान होना चाहिए और शास्त्रार्थ में पारंगत होना चाहिए।
वेदांत पर शास्त्रार्थ, उसके बाद चयन
शंकराचार्य के चयन प्रक्रिया में संन्यासी को वेदांत के विद्वानों से बहस करनी पड़ती है। सनातन धर्म के 13 अखाड़ों के प्रमुख आचार्य महामंडलेश्वर और संतों की सभा शंकराचार्य के नाम पर सहमति जताती है। इसके बाद काशी विद्या परिषद की भी सहमति लेना होती है। इसके बाद संन्यासी शंकराचार्य बन जाता है। शंकराचार्य दशनामी संप्रदाय के किसी एक संप्रदाय की साधना करते हैं।
जानें क्या होता है मठ और इसका धार्मिक महत्व
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों मठों का सनातन धर्म में काफी महत्व है। सनातन धर्म में गणित को धर्म और अध्यात्म की शिक्षा का सबसे बड़ा संस्थान मठ को कहा जाता है। मठों में गुरु-शिष्य परंपरा का पालन किया जाता है और इसी परंपरा के माध्यम से शिक्षा भी दी जाती है। साथ ही चार मठों के जरिए सामाजिक कार्य भी किए जाते हैं।
चारों मठ के नाम व उनका महत्व
ज्योतिर्मठ
उत्तराखंड के बद्रीनाथ स्थित ज्योतिर्मठ के अंतर्गत दीक्षा लेने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' और 'सागर' संप्रदाय के नाम विशेषण हैं। ज्योतिर्मठ का महावाक्य 'अयात्मा ब्रह्म' है। त्रोतकाचार्य इस मठ के पहले मठाधीश थे। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को 44वां मठाधीश बनाया गया था। इस मठ के अंतर्गत अथर्ववेद का अध्ययन किया जाता है।
श्रृंगेरी मठ
श्रृंगेरी मठ के तहत 'सरस्वती', 'भारती' और 'पुरी' विशेषण लगाए जाते हैं। दक्षिण भारत के चिकमंगलूर में श्रृंगेरी मठ है। इस मठ का महावाक्य 'अहं ब्रह्मास्मि' है। इस मठ के अंतर्गत यजुर्वेद को रखा गया है। इस मठ के पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वराचार्य थे। फिलहाल स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ इसके शंकराचार्य हैं, जो 36वें मठाधीश हैं।
गोवर्धन मठ
गोवर्धन मठ ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में है। गोवर्धन मठ के तहत दीक्षा लेने वाले भिक्षुओं के नाम के बाद 'वन' और 'अरण्य' विशेषण लगाया जाता है। गोवर्धन मठ का महावाक्य 'प्रज्ञानं ब्रह्म' है और इसके अंतर्गत 'ऋग्वेद' रखा गया है। गोवर्धन मठ के पहले मठाधीश आदि शंकराचार्य के पहले शिष्य पद्मपादाचार्य थे। फिलहाल निश्चलानंद सरस्वती इस मठ के शंकराचार्य हैं, जो 145वें मठाधीश हैं।
शारदा मठ
गुजरात के द्वारका शारदा मठ है और इस मठ के तहत दीक्षा लेने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' विशेषण रखे जाते हैं। इस मठ का महावाक्य 'तत्वमसि' है और इसके अंतर्गत 'सामवेद' का अध्ययन किया जाता है। शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्तामलक थे। वे आदि शंकराचार्य के चार प्रमुख शिष्यों में से एक थे। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती इस मठ के भी प्रमुख थे, उन्हें 79वां शंकराचार्य बनाया गया था।