धर्म डेस्क, इंदौर (Tulsi Vivah 2024)। प्रबोधिनी एवं देवउठनी एकादशी का पर्व मंगलवार को मनाया जा रहा है। वेद पुराणों में मान्यता है कि दीपावली के बाद पड़ने वाली एकादशी के दिन देव उठते हैं। यही वजह है कि देवउठनी एकादशी के बाद से ही सारे शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
इस एकादशी को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु छीर सागर में 4 महीने की निद्रा के बाद जागते हैं। कार्तिक मास की एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु जागते हैं। इनके जागने के बाद ही से सभी तरह के शुभ व मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
तुलसी जी के पौधे को गमले में रखकर सजाया जाता है और भगवान शालिग्राम जी के साथ विवाह किया जाता है।
एकादशी के दिन घरों में मंदिरों में गन्ने का मंडप बनाकर उसमें भगवान शालिग्राम विष्णु भगवान की मूर्ति रखकर उसका पूजन किया जाता है एवं भगवान को बेर, भाजी, आंवले, गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े, ज्वार के भुट्टे आदि चढ़ाए जाते हैं और भगवान का विधि पूर्वक पूजन करके भगवान सहित मंडप की परिक्रमा की जाती है।
इसी दिन हमारी महिलाएं भगवान के चरण घर में बनाती हैं और ‘उठो देव बैठो देव फावडी चटकार देव’ ऐसा कहते हुए परिक्रमा करते हैं एवं भगवान के नाम के जयकारा लगाते हैं।
देवउठनी एकादशी से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इस वर्ष देव उठने के साथ ही शहनाई की गूंज सुनाई देगी। एकादशी के दिन रात्रि जागरण का एवं भागवत कीर्तन का विशेष महत्व होता है। देवउठनी एकादशी के दिन प्रहलाद, नारद, परशुराम, पुंडरीक व्यास, अंबरीश, शुक्र, सोनक और भीष्म इत्यादि भक्तों का स्मरण करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।