Mahabharat का प्रसारण शुरू होने के बाद इससे जुड़े पात्रों और कथाओं की चर्चा फिर शुरू हो गई है। ऐसी ही एक कथा के अनुसार, कुंती के पति और महाराज पांडु एक बार वन में शिकार खेलने गए। जंगल में हिरण के रूप में एक ऋषि-दंपत्ती भी विहार कर रहे थे। पांडु ने अपने तीर से हिरणों के जोड़े को मार गिराया। ऋषि दंपति ने मरते-मरते पांडु को यह शाप दिया कि, 'राजन् अपनी पत्नी से साथ काम क्रीडा करते हुए ही तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।'
ऋषि के शाप से पांडु को बहुत दुख हुआ। साथ ही वह अपनी भूल से खिन्न होकर नगर की ओर लौट गए और पितामह भीष्म और विदुर को राज्य का कार्यभार सौंपकर अपनी पत्नियों के साथ वन में चले गए और वहां पर ब्रह्मचारी जैसा जीवन व्यतीत करने लगे।
कुंती ने देखा कि महाराज को पुत्र लालसा तो है, लेकिन ऋषि के शाप वश वह पुत्रोत्पति नहीं कर सकते हैं। अतः उनसे बचपन में दुर्वासा ऋषि से पाए वरदान का पांडु से जिक्र किया। तब पांडु ने कुंती से उन मंत्रों का प्रयोग करने को कहा।
उनके अनुरोध से कुंती ने महर्षि दुर्वासा के दिए हुए मंत्र का प्रयोग करके देवताओं के अनुग्रह से पांच पांडवों को जन्म दिया। वन में ही पांचो का जन्म हुआ और वहां तपस्वियों के साथ उनका लालन-पालन हुआ। अपनी दोनों पत्नियों और पांचों बेटों के साथ पांडु कई सालों तक वन में रहे।
एक दिन की बात है, बसंत का मौसम था। महाराज माद्री के साथ प्रकृति की इस सुंदरता को निहार रहे थे। ऋतु के प्रभाव से उनमें काम-वासन जाग्रत हो गई। वह माद्री के साथ काम-क्रीडा करने के लिए आतुर हो गए। माद्री ने बहुत रोका, लेकिन पांडु नहीं माने। कामवश वह अपनी बुद्धि खो बैठे थे तब उनकी तत्काल मृत्यु हो गई।ं
माद्री इस कारण बहुत दुखी थीं। वह भी पांडु के साथ जलती चिता पर बैठ गईं। इस तरह दोनों की मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद कुंती और पांचों पुत्रों पर दुख का पहाड़ टूट गया। वन के मुनियों ने कुंती को समझाया कि पांचों पांडवों को हस्तिनापुर में पितामह भीष्म के पास भेज दें, ताकि उनकी शिक्षा कुशलतापूर्वक हो सके। युद्धिष्ठर की उम्र उस समय सोलह वर्ष की थी।
हस्तिनापुर के लोगों ने जब ऋषियों से सुना की वन में पांडु की मृत्यु हो गई, तो उनके शोक की सीमा न थी। पितामाह भीष्म, विदुर आदि स्वजनों ने यथा विधि पांडु का श्राद्ध कर्म किया।