धर्म डेस्क, इंदौर। जीवन में कोई जीव अकेला नहीं, कभी खुद को अकेला महसूस न करें, क्योंकि श्मशान, शिखर और सिंहासन पर अकेला ही जाया जाता है। शुभकर्म में किसी के साथ का इंतजार न करें। अकेले भी कर्म, धर्म करने का मौका मिलता है, तो इसे गंवाना मत। शिव की आराधना कोई भी कर सकता है। भगवान शिव पूजा-अर्चना सेठ से लेकर गरीब कर सकता है। भगवान तो सिर्फ भाव के भूखे हैं। यह कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा।
उन्होंने कहा कि भगवान शिव के अनेक गुण हैं, लेकिन शांत रहना, समदर्शी, विनम्रता और निम्रलता आदि गुणों को श्रद्धालु ले लें, तो शिव की प्राप्ति हो सकती है। आपके जीवन में जब भी असफलता और निराश आए, तो भगवान शिव पर भरोसा करना वह आपको कामयाबी दिलाएगा। भगवान शिव की आराधना करने वाला भक्त कभी दुखी नहीं रहता है।
भगवान भोलेनाथ हर भक्त की सुनते हैं। भोले की भक्ति में शक्ति होती है। भगवान भोलेनाथ कभी भी किसी भी मनुष्य की जिंदगी का पासा पलट सकते हैं। बस भक्तों को भगवान भोलेनाथ पर विश्वास करना चाहिए और उनकी प्रतिदिन आराधना करनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि क्लेश, झूठ, प्रपंच, बेईमानी यह सब नर्क के द्वार हैं। इनसे बचना उत्थान और इनमें उलझे रहना पतन के समान है। ईश्वर भक्त के बिना और भक्त ईश्वर के बिना नहीं रह सकता। जन्म से लेकर मृत्यु तक ईश्वर साथ होते है। आप अगर सद्मार्ग पर चलोंगे तो मोक्ष पाओंगे। उसने जन्म दिया, उदर (पेट) दिया है, तो भरने कि जिम्मेदारी भी उसकी है।
भगवान शिव बहुत ही भोले हैं। आप स्वच्छ मन से याद करेंगे, तो ही हो प्रसन्न हो जाते हैं। आप पूजा पाठ भी नहीं करेंगे, लेकिन मन सुदंर है तो वह प्रसन्न हो जाते हैं। देवो के देव महादेव भगवान शंकर को औघड़दानी कहा जाता है। वह सबको साथ लेकर चलते हैं। वह व्यक्ति के मन की पवित्र व सुंदर सोच से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
भगवान शिव को कोई भी बिना साधन, सामग्री के शिव पूजन संपन्न कर सकते हैं। वास्तव में मानसिक पूजा का शास्त्रों में श्रेष्ठतम पूजा के रूप में वर्णित है। इस शिव मानस पूजा को सुंदर-समृद्ध कल्पना से करने पर शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। वह मानसिक रूप से चढ़ाई हर सामग्री को प्रत्यक्ष मानकर आशीर्वाद देते हैं।
पंडित मिश्रा ने कहा कि देश और धर्म के लिए आज की पीढ़ी को ऋषि दधीचि की तपस्या, त्याग और बलिदान से सीख लेने की आवश्यकता है। देवराज इंद्र ने ऋषि दधीचि से उनकी अस्थियां असुर राज वृत्रासुर का वध करने के लिए देने का निवेदन किया, तो ऋषि ने देवताओं से कहा कि यह देह क्षण भंगुर है। यह शरीर लोक कल्याण और विश्व की रक्षा के लिए है। दधीचि ने विश्वकल्याण के लिए शरीर त्याग दिया।