धर्म डेस्क, इंदौर। कर्ण महाभारत के पात्रों में सबसे वीर योद्धा हैं। वह पांडवों के सबसे बड़े भाई थे, लेकिन फिर भी अपने अधिकारों को पा न सकें। कुंती की कोख से जन्म लेने के बाद भी वह शूद्र पुत्र कहलाए। जीवन में कई परेशानियों को झेलने के बाद दुर्योधन जैसा साथी मिला।
दुर्योधन उनका अकेला ऐसा मित्र था, जिसको उनके शूद्र पुत्र होने से दिक्कत नहीं थी। कर्ण ने भी अपने अंतिम समय तक उससे दोस्ती निभाई।
कथा की मानें तो कुंती को दुर्वासा ऋषि से वरदान मिला था कि वह किसी भी देवता को याद कर पुत्र पा सकती हैं। कुंती ने वरदान को जांचने के लिए शादी से पहले ही सूर्य देव का स्मरण कर लिया, जिससे उनको कर्ण जैसा तेजस्वी बालक प्राप्त हुआ।
विवाह के पहले पुत्र की प्राप्ति होने पर कुंति को लोकलाज का भय सताने लगा। उन्होंने कर्ण को एक बक्से में रखकर नदी में बहा दिया। अधिरथ (हस्तिनापुर के सारथी) को सुबह नदी में स्नान के दौरान कर्ण मिले, जिसकी परिवरिश उन्होंने पुत्र के रूप में की। अधिरथ की पत्नी ने कर्ण को बेटे के रूप में स्वीकार किया। उनका बहुत ही स्नेह से लालन पालन किया।
कुंती ने कर्ण की सच्चाई सबसे छिपाकर रखी थी। कुंती नहीं चाहती थीं कि उनके इस राज के बारे में किसी को पता चले, लेकिन नारद ऋषि, भगवान कृष्ण और विदुर यह जानते थे। उनके अलावा भीष्ण पितामह और महाभारत ग्रंथ के रचियता वेदव्यास को इस बात की जानकारी थी।
भीष्म पितामह मृत्यु शैय्या पर लेटे थे, तब कर्ण उनसे मिलने पहुंचे। उन्होंने सच्चाई बताते हुए कहा कि उनको पता है कि वह कुंती पुत्र हैं। वह पांचों पांडवों में सबसे बड़े हैं। इस बात को जानकर कर्ण को हैरानी हुई। उन्होंने पूछा कि आपको यह कैसे पता था?
भीष्म पितामह ने कहा कि नारद ऋषि ने तुम्हारी सच्चाई बताई थी। उसके अलावा श्रीकृष्ण और द्वैपायन व्यास ने तुम्हारे जन्म के बारे में सारा सच बताया था।