अमरनाथ धाम श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक महत्व और पुण्य की यात्रा है। जिसने भी इस यात्रा के बारे में जाना या सुना है, वह कम से कम एक बार जाने की इच्छा जरूर रखता है। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए श्रद्धालु यहां आते हैं।
अमरनाथ यात्रा का नाम सुनते ही भोले बाबा शिव शंकर के बर्फ से बने विशाल शिवलिंग की छवि आंखों के सामने आ जाती है। इस पवित्र यात्रा के लिए हिन्दू ही नहीं सिख और अन्य धर्म के लोग भी आते हैं। हिन्दू धर्म में तो इस धार्मिक यात्रा का कुछ खास ही महत्त्व है।
दक्षिण कश्मीर में 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित श्री अमरनाथ गुफा मंदिर में पवित्र शिवलिंग लोगों की आस्था का केंद्र है। शास्त्रों के अनुसार यह वही पवित्र स्थान है जहां भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरकथा सुनाई थी।अमरकथा सुनने के दौरान माता पार्वती को नींद आ गई। भगवान शिव जब यह कथा सुना रहे थे, तो दो कबूतर भी यह सुन रहे थे। ब्रह्मांड का रहस्य जानकर उन कबूतरों को अमरत्व की प्रप्ति हो गई। कहते हैं कि हर साल सावन मास की पूर्णिमा को ये कबूतर गुफा में दिखाई पड़ते हैं।
अमरनाथ गुफा यह कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में 135 सहस्त्रमीटर दूर समुद्रतल से 13,600फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इस गुफा की लंबाई (भीतर की ओर गहराई) 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। गुफा 11 मीटर ऊंची है।अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है।
अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है। यात्रा के दौरान भारत की विविध परंपराओं, धर्मों और संस्कृतियों की झलक देखी जा सकती है।अमरनाथ यात्रा में शिव भक्तों को कड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन कश्मीर के मनोरम प्रकृति नजारों और धार्मिक तथा अध्यात्म का अनोखा पुट इससे जुड़ा है।
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इस यात्रा में रास्ते उबड़-खाबड़ हैं। कभी बर्फ़ गिरने लग जाती है, कभी बारिश होने लगती है तो कभी बर्फीली हवाएं चलने लगती है। फिर भी भक्तों की आस्था और भक्ति इतनी मज़बूत होती है कि यह सारे कष्ट महसूस नहीं होते और बाबा अमरनाथ के दर्शनों के लिए एक अदृश्य शक्ति से खिंचे चले आते हैं। जून से लेकर अगस्त माह तक दर्शनों के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।