धर्म डेस्क, इंदौर। हिंदू त्योहारों की गणनाओं, किसी शुभ कार्य या मुहूर्त निकालते समय अक्सर हम अधिक मास और खरमास के बारे में सुनते हैं। अधिकांश लोग खरमास और अधिक मास को एक ही समझ लेते हैं, जबकि अधिक मास और खरमास में बहुत अधिक अंतर होता है। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, खरमास के दौरान कोई भी शुभ कार्य करना पूरी तरह से वर्जित होता है, दूसरी ओर अधिक मास का आगमन 3 साल में एक बार होता है। अधिक मास को ही मल मास या पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक मान्यता है कि अधिक मास के स्वामी भगवान विष्णु हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्य देव जब बृहस्पति की राशि मीन में प्रवेश करते हैं तब खरमास का प्रारंभ हो जाता है। ज्योतिष गणना के मुताबिक सूर्य देव सभी 12 राशियों का भ्रमण एक सौर वर्ष में करते हैं। यह अवधि 365 दिन 6 घंटे की अवधि का होता है। वहीं दूसरी ओर चंद्र देव सभी 12 राशियों का भ्रमण 354 दिन 9 घंटे में करते हैं। ऐसे में हिंदू पंचांग में सूर्य और चंद्रमा के वर्ष का समीकरण को ठीक करने के लिए अधिक मास की व्यवस्था को गई। पंचांग के अनुसार, अधिक मास 3 साल में एक बार आता है, जबकि खरमास हर साल लगता है।
जब सभी ग्रहों के स्वामी सूर्य देव धनु या मीन राशि में गोचर करते हैं तो इस दौरान इसे खरमास कहा जाता है। इस एक माह की अवधि के बाद जब सूर्य देव मकर संक्रांति पर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो खरमास की समाप्ति होती है। हिंदू धर्म में खरमास को शुभ कार्यों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि खरमास के दौरान सूर्यदेव की चाल धीमी हो जाती है और इस दौरान शादी, गृह प्रवेश, मुंडन और उपनयन जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
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