Ketu Mahadasha: छाया ग्रह केतु की महादशा 7 वर्ष की होती है। इस दौरान शुभ या अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। यह परिणाम कुंडली में केतु की स्थिति पर निर्भर है। यदि कुंडली में केतु उत्तम स्थिति में है, तो जातक की आध्यात्मिकता में दिलचस्पी बढ़ती है। आकस्मिक रूप से लाभ होता है। मान-सम्मान, पराक्रम व साहस में बढ़ोतरी होती है। केतु महादाशा के दौरान मन में सांसारिक विषयों के प्रति अरुचि जागृत करता है। मनुष्य की आध्यात्मिक गतिविधियां बढ़ जाती है और तीर्थ यात्राएं करने का मौका मिलता है। यदि केतु वृश्चिक या धनु राशि में शुभ भावों में स्थित है, तो जातक सफलता की बुलंदियों को छूता है। अगर केतु अशुभ स्थिति में है तो जटिल रोग, हादसा, और आकस्मिक रूप से हानि हो सकती है। परिवार से अलगाव हो सकता है। पद-प्रतिष्ठा में गिरावट हो सकती है। सेहत पर नकारात्मत असर पड़ सकता है।
वैदिक ज्योतिष में 6 नक्षत्रों में पैदा हुए व्यक्ति को गंडमूल नक्षत्र का माना गया है। इनमें तीन नक्षत्र यथा अश्विनी, मघा और मूल नक्षत्र केतु के आधिपत्य के नक्षत्र हैं। इन नक्षत्रों को जातक के लिए नहीं बल्कि माता-पिता के लिए कष्टदायक बताया गया है। गंडमूल नक्षत्र में पैदा हुए जातक के जन्म के 27 दिन के अंदर नक्षत्र पूजा करनी चाहिए। लग्न में केतु वाला व्यक्ति चिड़चिड़े स्वभाव का होता है। यदि केतु के नक्षत्र में कई ग्रह हों तो जातक अतिमहत्वाकांक्षी होता है।
- केतु को शांत करने के लिए किसी भिखारी को वस्त्र दान करें।
- केतु ग्रह यदि कुंडली में अशुभ स्थिति में हो तो काली गाय दान करना चाहिए।
- घर के दक्षिण पश्चिम कोने में तिकोनी ध्वजा लगाए।
- कुत्तों को तेल से चुपड़ी रोटी खिलाएं। ऐसा करने से केतु के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
- मंत्र ऊँ कें केतवे नमः का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।
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