Ambaji Mandir: यहीं हुआ था भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन, रामायण में है गब्बर की कहानी
Ambaji Mandir Ki Kahani: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अंबाजी मंदिर से विशेष लगाव है। वे शुरू से यहां आते रहे हैं। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी यह सिलसिला जारी है। देखिए अंबाजी मंदिर के फोटो और वीडियो
By Arvind Dubey
Edited By: Arvind Dubey
Publish Date: Fri, 30 Sep 2022 09:17:13 AM (IST)
Updated Date: Fri, 30 Sep 2022 09:17:13 AM (IST)
Ambaji Mandir Ki Kahani: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने गुजरात दौरे के दूसरे दिन शुक्रवार को प्रसिद्ध अंबाजी मंदिर जाएंगे। पीएम मोदी यहां विशेष पूजा करेंगे और महाआरती में हिस्सा लेंगे। माता के भक्तों के लिए अंबाजी मंदिर का विशेष महत्व है। यह 1200 वर्ष पुराना मंदिर है। अंबाजी मंदिर की मुख्य कहानी शक्तिपीठों के निर्माण से जुड़ी है। दक्ष प्रजापति ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था लेकिन सती और शिव को आमंत्रित नहीं किया। बिन बुलाए सती यज्ञ स्थल पर पहुंच गईं, जहां दक्ष ने सती के साथ-साथ शिव की भी उपेक्षा की।
51 शक्तिपीठों में शामिल है अंबाजी
सती इस अपमान को सहन नहीं कर सकीं। देवी सती ने अपने पिता राजा दक्ष द्वारा आयोजित हवन की आग में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। जब भगवान शिव सती के जले हुए शरीर को लेकर ब्रह्मांड के चारों ओर तांडव कर रहे थे, भगवान विष्णु ने उन्हें शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग करके शरीर को 51 भागों में विभाजित किया। उन 51 अंगों में से सती का 'हृदय' इसी स्थान पर गिरा था। यहां सती को अरासुरी अंबाजी माता कहा जाता है। यह मंदिर ऐतिहासिक काल का माना जाता है और वर्तमान स्थान बारह सौ वर्ष पुराना है।
रामायण में गब्बर की कहानी
रामायण में कहा गया है कि भगवान राम और लक्ष्मण सीता की तलाश में श्रृंगी ऋषि के आश्रम में आए थे, जहां उन्हें गब्बर में देवी अंबाजी की पूजा करने के लिए कहा गया था। राम ने ऐसा ही किया और जगत माता शक्ति (सारे ब्रह्मांड की ऊर्जा की जननी) देवी अंबाजी ने उन्हें "अजय" नाम का एक चमत्कारी बाण दिया, जिसकी मदद से राम ने युद्ध में अपने दुश्मन रावण को जीत लिया और मार डाला।
भगवान कृष्ण का मुंडन यहीं हुआ था
एक किंवदंती यह भी है कि द्वापर युग के दौरान बाल भगवान कृष्ण को भी इस गब्बर पहाड़ी पर लगाया गया था। उनके पालक माता-पिता नंद और यशोदा की उपस्थिति में कान्हा का मुंडन संस्कार यही हुआ था।