नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। बीते कुछ महीनों से शहर के अस्पतालों में बच्चों को लेकर आने वाले अभिभावकों की संख्या में इजाफा नजर आ रहा है। इसकी वजह मौसमी बीमारी नहीं, बल्कि डिजिटल दुनिया के कारण बढ़ने वाला रोग है। हैरानी की बात यह है कि यह रोग उन बच्चों में ज्यादा नजर आ रहा है, जिनके अभिभावक खुद गैजेट की गिरफ्त में हैं।
कारण चाहे नौकरी-व्यवसाय हो या शौक। इसका खामियाजा उनके बच्चों को वर्चुअल ऑटिज्म से ग्रसित होकर चुकाना पड़ रहा है। अभिभावकों द्वारा बच्चों को पर्याप्त समय देने के स्थान पर ब्ल्यू स्क्रीन का ‘झुनझुना’ हाथ में थमाना वर्चुअल ऑटिज्म की वजह बन रहा है।
वर्चुअल ऑटिज्म की चपेट में आने वाले बच्चों के अभिभावकों से जब शहर के चिकित्सकों ने चर्चा की। तब यह बात सामने आई कि वे व्यस्तता के चलते बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। ऐसे में बच्चे डिजिटल वर्ल्ड में अपनी दुनिया तलाशने लगते हैं।
शहर के निजी से लेकर सरकारी अस्पताल में हर माह वर्चुअल ऑटिज्म के 20 से 30 प्रतिशत मामले सामने आ रहे हैं। इस चिंताजनक स्थिति में अधिकतर बच्चे उन परिवारों से हैं, जहां माता-पिता गैजेट का उपयोग ज्यादा करते हैं।
ये बच्चे किसी कार्टून कैरेटर या गेम के किसी कैरेटर की तरह व्यवहार करने लगते हैं। इन्हें समाज में किसी से मतलब नहीं होता और अकेले रहना पसंद करते हैं। लड़ाई करना, गुस्सा अधिक करना, अंगूठा चूसना आदि इनकी आदत में शामिल हो जाता है।
वर्चुअल ऑटिज्म एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बच्चे डिजिटल उपकरणों, विशेष रूप से मोबाइल, टीवी और टैबलेट का अत्यधिक उपयोग करने के कारण सामाजिक और भावनात्मक विकास में बाधा का सामना करते हैं। इस स्थिति में बच्चे वास्तविक दुनिया से दूर होते हैं और डिजिटल दुनिया के कैरेक्टर को वास्तविक समझने लगते हैं। एकल परिवार में माता-पिता की व्यस्तता के चलते बच्चों को स्क्रीन पर अधिक समय बिताने दिया जाता है, जिससे उनके व्यवहार में असामान्य बदलाव देखने को मिलते हैं।- डॉ. मनीष गोयल, प्रभारी फिजियोथेरेपी विभाग
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. वैभव चतुर्वेदी के अनुसार, जो अभिभावक या परिवार के ज्यादातर सदस्य मोबाइल-लैपटॉप का उपयोग ज्यादा करते हैं। उस घर के बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है।
असल में होता यह है कि ये बच्चे बड़ों को देखकर अपना स्क्रीन टाइम बढ़ा देते हैं और कार्य में व्यस्त अभिभावक भी इस पर ध्यान नहीं देते हैं। वर्चुअल ऑटिज्म के कारण बच्चों में एंग्जायटी, डिप्रेशन, आक्सेसिव कंपल्सिव डिसआर्डर (ओसीडी) की आशंका बढ़ जाती है।
बाल विकास एवं व्यवहार विशेषज्ञ डॉ. शुभि वर्मा बताती हैं कि बच्चों के व्यवहार में यदि बदलाव आ रहा है, तो उसे अनदेखा न करें। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि यह व्यावहारिक समस्याएं किस वजह से दिन में कितनी बार और कितनी तीव्रता से हो रही हैं।
बच्चे यदि मोबाइल में उग्र कार्टून जैसी चीजें देख रहे हैं, तो इससे भी व्यावहारिक समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे मोबाइल में क्या देख रहे हैं। मोबाइल देखने का समय निर्धारित करें। स्वजन बच्चों की पढ़ाई में समस्या आने पर भी ध्यान रखें। बच्चों के साथ अधिक समय बिताएं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, बच्चों को बाहरी खेलों और सामाजिक गतिविधियों में शामिल करना जरूरी है। बच्चों को स्क्रीन से दूर रखने के लिए उनकी दिनचर्या में बदलाव और परिवार के साथ अधिक समय बिताने का प्रयास करना चाहिए। इंदौर में इसके बढ़ते मामलों से स्पष्ट होता है कि बच्चों पर माता-पिता ध्यान नहीं दे रहे हैं।