पहाड़ों में बसे गढ़वाल में 1918 से 1926 तक ऐसा आतंक का माहौल था कि लोग शाम होते ही अपने घर में कैद हो जाया करते थे। अगर गलती से भी कोई उस 500 वर्ग किमी के इलाके में रात को घर से बाहर निकल गया तो उसकी सुबह कभी नहीं हुई। उसे मिली तो केवल मौत। रुद्रप्रयाग के इलाके में एक नरभक्षी तेंदुआ खौफ का कारण था। इन आठ सालों में उसने 125 लोगों को अपना शिकार बना लिया था। लेकिन 26 मई 1926 को इस खौफनाक आतंक का अंत हुआ।
आठ सालों तक लोगों का जीना दुश्वार करने वाले इस तेंदुए के आतंक की खबरें सिर्फ भारत में ही नहीं फैली थी, बल्कि ब्रिटेन के अखबारों की भी सुर्खिया बन गईं। इस संबंध में ब्रिटेन की संसद में भी उसकी चर्चा होने लगी थी।
ऐसे हुआ आतंक का अंत
लोगों को लगता था कि उस इलाके में दो तेंदुए हैं लेकिन वहां एक ही तेंदुआ था। लोगों को यह इसलिए लगता था कि यह शातिर तेंदुआ कभी नदी के एक तरफ, तो कभी नदी के दूसरी तरफ से शिकार करता था। लोगों को यही लगा कि दो तेंदुए हैं।
जब इस तेंदुए को पकड़ने में सेना की स्पेशल यूनिट कामयाब नहीं हुई। तेंदुए ने तब तक 90 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। उसके बाद उत्तर प्रदेश के गवर्नर ने नैनीताल के मशहूर शिकारी जिम कॉर्बेट से संपर्क किया। 1925 को उन्हें तेंदुए को मारने की इजाजत मिली।
तेंदुए को मारने की अनुमति लेने के बाद कॉर्बेट कई दिनों की पैदल यात्रा कर कुमाऊं से गढ़वाल पहुंचे। वहां पहुंचने के बाद भी उन्हें शातिर तेंदुए तक पहुंचने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। दूसरी तरफ तेंदुआ आए दिन लोगों को अपना शिकार बनाता जा रहा था.
आखिरकार 26 मई 1926 की रात जिम कॉर्बेट को कामयाबी मिल गई। गोली लगते ही तेंदुआ अंधेरे में ओझल हो गया और देर बाद वो जोर से गुर्राया और उसके बाद उसकी जान चली गई। अगली सुबह रुद्रप्रयाग के पास पहाड़ की एक चोटी पर उसकी लाश मिली।
इसलिए तेंदुआ बना था नरभक्षी
जिम कॉर्बेट ने जब उस बूढ़े तेंदुए को देखा तो पता चला कि उसका एक नुकीला दांत काफी पहले से टूटा हुआ था। पता चला कि दो नौसिखिये शिकारियों ने आठ-नौ साल पहले उस जवान तेंदुए का शिकार करने की कोशिश की। गोली उसके दांत में लगी और तब से वो जंगली जानवरों का शिकार कर पाने में असक्षम हो गया। भूख से बेहाल तेंदुए ने पेट भरने के लिए कोमल मांस वाले इंसान पर झपटना शुरू कर दिया।
सूर्योदय के वक्त तेंदुए की लाश के पास पहुंचे जिम कॉर्बेट ने उसे सहलाया। वहां पर कुछ फूल गिराये और कहा, हिमालय तुम्हें हमेशा अपनी गोद में सुलाये रखे।
एशिया का पहला नेशनल पार्क
तेंदुए की मौत देखकर कॉर्बेट इतने दुखी हुए कि उन्होंने वन्य जीवन को बचाने की मुहिम छेड़ दी। वो लगातार कहने लगे कि जानवरों के लिए अगर जंगल ही नहीं बचेगा तो वो क्या करेंगे। जिम कॉर्बेट की ही सलाह पर 1936 में ब्रिटिश सरकार ने उत्तराखंड में एशिया का पहला नेशनल पार्क बनाया।
जिम कॉर्बेट के भारत छोड़कर केन्या जाने के बाद उनके दोस्त और उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने पार्क का नाम जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया जहां आज दुनिया में बाघों का बसेरा है।