Special Story : जबलपुर, सुनील दाहिया, नई दुनिया। शहर के एक होनहार पढ़े लिखे युवा ने गरीबों को निश्शुल्क शिक्षा देना ही अपना ध्येय बना लिया है। 43 वर्षीय पराग दीवान पिछले सात वर्षों से नर्मदा क्षेत्र ग्वारीघाट के गरीब बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा दे रहे हैं। उच्चाशिक्षित पराग दीवान वैसे तो गणित, विज्ञान सहित हर विषय में निपुण है। पर वैदिक गणित में उन्हें महारथ हासिल है। वे कक्षा एक से लेकर 12वीं तक के बच्चों को भी अपनी अलग ट्रिक से इस तरह पढ़ा रहे हैं कि बच्चे भी हाथ की अंगुलियों को कैल्युलेटर बनाकर बड़े से बड़े अंक का स्क्वैयर, क्यूब पलक झपकते ही निकाल लेते हैं। गणित के बड़े से बड़े सवाल एक पल में हल कर देते हैं। गणित-विज्ञान के सूत्र यहां तक की संस्कृत के श्लोक भी बच्चों को कंठस्थ हो चुके हैं। उन्हें पढ़ाते देख नर्मदा दर्शन करने आने वाले भी ठिठक कर रहे जाते हैं। ग्वारीघाट नर्मदा तट उमाघाट के समीप रोजाना रात आठ बजे से खुले आसमान के नीचे पराग की पाठशाला लगती है। जिसमें करीब 300 बच्चे पढ़ते हैं। पराग फिलहाल कक्षा एक से 12वीं के बच्चों को गणित, विज्ञान, भूगोल, संस्कृत और समाजिक विज्ञान पढ़ा रहे हैं। उनके पास पढ़ने वाले 10 बच्चों सेना में भर्ती हो चुके हैं।जबकि अधिकांश अलग-अलग क्षेत्रों में अच्छी नौकरी कर अच्छा जीवन जी रहे हैं।
चार बच्चों से की थी शुरूआत आज 300 पढ़ रहे-
पराग बताते हैं कि गरीब बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 2016 से नर्मदा तट पर चार-पांच बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था। उनकी पढ़ाई की ट्रिक बच्चों को पंसद आई और उनकी योग्यता बढ़ती गई। धीरे-धीरे और बच्चे भी उनके पास पढ़ने के लिए आने लगे। वर्तमान में वे खुले आसमान के नीचे छोटे से लेकर बड़े करीब 300 बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। उनकी क्लास में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवा भी पहुंच रहे हैं।
स्कूलाें में प्रवेश भी कराते हैं, पालक की भूमिका भी निभाते हैं-
उनके यहां पढ़ने वाले बच्चे गरीब है। उनके परिवार के लोग नाव चलाकर या पूजन सामग्री बेचकर जीवन यापन करते हैं। आर्थिक स्थितियां कमजोर होने से वे स्कूल का खर्चा उठाने में अक्षम हैं। लिहाजा पराग उन्हें न सिर्फ निश्शुल्क पढ़ा रहे हैं बल्कि योग्यता के आधार पर सरकारी व निजी स्कूलों में प्रवेश भी दिला रहे हैं। किताब, कापी, यूनिफार्म का खर्चा भी खुद वहन कर रहे हैं। अभिभावक बैठक में पालक की भूमिका भी निभा रहे हैं।
मां की इच्छा थी कि गरीबों के लिए हो स्कूल, जहां विद्यार्थी ही शिक्षक हो-
पराग बताते हैं कि उनके पिता बहुत पहले ही दुनिया से विदा हो चुके हैं। उनकी मां भी वर्ष 2016 में छोड़ कर चलीं गईं। वह नर्मदा भक्त तो थीं ही बच्चों को ड्राइंग सिखाती थी। घाट पर जब बेसहारा बच्चों को फूल व पूजन सामग्री बेचते, नाव चलाते देखती थी तो उनका दिल पसीज जाता था। मां अक्सर कहती थीं कि तुम बच्चों को शिक्षित करो, मां का सपना गरीब बच्चों के लिए ऐसा स्कूल खोलने का था जिसमें विद्यार्थी ही शिक्षक हों। मसलन विद्यार्थियों को इस कदर शिक्षित कर दिया जाए कि वे दूसरे विद्यार्थियों को पढ़ा सकें। पराग बताते हैं कि पैसे के अभाव में वे स्कूल तो नहीं खोल पाए पर मां की प्रेरणा और आर्शीवाद से मां नर्मदा के पावन तट पर शिक्षा देना शुरू कर दिया। रोजाना शाम को जिस तरह नर्मदा आरती होती है उसी तरह रोजाना क्लास भी लगती है।
कोचिंग पढ़ाते हैं जो पैसे मिलते हैं गरीबाें की शिक्षा में खर्च करते हैं-
पराग दीवान ने एमसीए किया है। उन्हें अध्यापन कार्य को पेशा बनाया और गरीबों को शिक्षित करने का प्रण भी ले लिया। वर्तमान में वे गोरखपुर नरेंद्र डेयरी के पास एक छोटा सा कमरा लेकर बच्चों को सशुल्क कोचिंग पढ़ाते हैं। कोचिंग क्लास से जितनी आय होती है उसमें से कुछ अपने घर के लिए और बाकी पैसा गरीबों की शिक्षा पर खर्च कर देते हैं। उनके परिवार में एक छोटा भाई है। उन्होंने अभी तक विवाह नहीं किया। उनका कहना है कि वे अब विवाह नहीं करेंगे ताउम्र गरीबों बच्चों को शिक्षित करते रहेंगे ताकि आगे चलकर वे अपना भविष्य उज्जवल कर सके।