सनातन संस्कृति को संस्कारों, त्यौहारों और व्रतों की संस्कृति कहा जाता है। साल के बारहों महीने यहां पौराणिक उत्सवों की बयार बहती रहती है। ऐसा ही साल का एक अत्यंत पवित्र और अनन्त पुण्य देने वाला दिन है अक्षय तृतीया।
इस दिन पुण्य कार्य में कई गुना पुण्य मिलता है और पुण्य कार्य का फल भी अक्षय होता है। अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। इस दिन शुभ काम करने के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती है।
पुराणों में कहा गया है कि इस दिन पितरों के निमित्त किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान या पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है।
अक्षय तृतीया यदि सोमवार और रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं।
अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की आराधना करने का विधान है। ।मान्यता है कि इस दिन सत्तू का सेवन करना चाहिए और नए वस्त्र और आभूषण धारण करना चाहिए। गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान भी इस दिन किया जाता है।
यह तिथि वसंत ऋतु की विदाई और ग्रीष्म के आगमन का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि ग्रीष्म में फायदा पहुंचाने वाली वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है।
सर्वत्र शुक्ल पुष्पाणि प्रशस्तानि सदार्चने।
दानकाले च सर्वत्र मंत्र मेत मुदीरयेत्॥
अर्थात सभी महीनों की तृतीया में सफेद पुष्प से किया गया पूजन प्रशंसनीय माना गया है।ऐसी भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर अपने अच्छे आचरण और सद्गुणों से दूसरों का आशीर्वाद लेना अक्षय रहता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है।
भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से माना जाता है। भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन माना जाता है।
प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, बाकी पूरे साल श्री विग्रह वस्त्रों से ढके रहते हैं। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।