बुटाटी धाम, राजस्थान से नवोदित सक्तावत
देश में एक ऐसी अनूठी रसोई है जहां प्रतिदिन करीब 5 हजार लोगों का दोनों समय का भोजन बनता है। सहयोग और सेवा से पकने वाला भोजन सभी को मन से तृप्त कर देता है। इसे ग्रहण करने वाले देशभर से आए लोग होते हैं। खाने के साथ रहने की भी व्यवस्था है। ये सारी सुविधाएं पूरी तरह से निशुल्क हैं। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के नागौर जिले में स्थित प्रसिद्ध बुटाटी धाम मंदिर जो व्यापक पैमाने पर सांझे चूल्हे की अनुपम मिसाल बनकर उभरा है। मान्यता है कि यहां लकवे के मरीज ठीक हो जाते हैं। इसके चलते यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग मरीजों को लेकर आते हैं। देश में इतने बड़े पैमाने पर लोगों का यहां दुखदर्द के साथ भोजन भी मिल-बांटकर लेना सामूहिक समरसता की अनूठी मिसाल कायम करता है। आइये इस विशेष रिपोर्ट में जानते हैं इस रसोई की क्या खासियत है।
यह है खाने का पूरा सिस्टम
- शाम के समय दाल बनाई जाती है। इसकी मात्रा 45 से 50 किलो होती है।
- दिन के समय हरी सब्जी बनती है। सब्जी बनाने वाले केवल चार या पांच ही सेवादार होते हैं, शेष दर्जनों बनाने वाले लोग स्वयं श्रद्धालु ही होते हैं।
- चूंकि इतनी बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं, उनमें से कोई ना कोई हलवाई होता ही है, ऐसे में वह खाना बनाने का जिम्मा ले लेता है।
- दिन और रात दोनों समय सूखा आटा दिया जाता है। प्रति पंजीकृत व्यक्ति को यह एक कटोरी दिया जाता है। कटोरी 200 ग्राम की होती है।
- कभी किसी की तरफ से डोनेशन में हलवा पूड़ी बनवाई जाती है। संयोग से एकादशी के दिन रसोई में हलवा पूरी ही बनाई जा रही थी। साथ में आलू की सब्जी पकाई जा रही थी।
- भोजन बनाते समय सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है। सब्जी या दाल बनाने के बाद तत्काल उसे दो बार ढांका जाता है ताकि उसमें कुछ गिर ना सके।
- भोजन पकाने के लिए चार बड़े चूल्हे बने हुए हैं। इन पर लकड़ी जलाकर भोजन बनता है। लकड़ी की भी यहां अच्छी-खासी व्यवस्था है। एक सुरक्षित स्थान पर लकड़ी का स्टाक रखा जाता है।
रोजाना 8 घंटे चलती है मंदिर की चक्की, पीसती है कई क्विंटल अनाज
मंदिर परिसर में ही स्थित विशेष आटा चक्की है जो केवल भोजन व्यवस्था के लिए ही है। यह दिन में दो बार चलती है। सुबह 7 से 11 और शाम को 4 से 6 बजे तक। प्रतिदिन यह 8 से 10 क्विंटल अनाज पीसती है। चक्की संचालक नवरंग सिंह बुटाटी के ही रहने वाले हैं। उन्हें इस काम का बकायदा वेतन भी मिलता है। नवरंग बताते हैं कि अधिक भीड़ के समय यह मात्रा 15 क्विंटल तक पहुंच जाती है।
सांझे चूल्हे में बने हैं अनेक चूल्हे
अपने हिस्से का आटा लेने के बाद रोटी बनाने के लिए सांझा चूल्हा की व्यवस्था है। यह एक ऐसी जगह बना है जहां पर एक साथ पचास-साठ चूल्हे बने हुए हैं। सारे लोग यहां एक साथ जब खाना बनाते हैं तो वह दृश्य अदभुत बन पड़ता है।
रसीद से मिलता है राशन
चूंकि नियमानुसार श्रद्धालु यहां 7 दिन से अधिक नहीं ठहर सकते इसलिए उन्हें आने के बाद सबसे पहले आने की सूचना मंदिर कार्यालय में देना होती है। वहां से उन्हें रसीद दी जाती है, जिसके आधार पर उन्हें 7 दिन तक सुविधाएं एवं सामग्री प्राप्त होती हैं।
अन्न की कमी नहीं आती
भोजन व्यवस्था प्रभारी ओमप्रकाश शर्मा कहते हैं यहां कभी अन्न की कमी नहीं आती। जितनी खपत होती है उससे अधिक तो दान में आ जाता है। नियमित रूप से दान में अनाज व सब्जियां आती हैं। वर्तमान में मंदिर के स्टोरेज में कम से कम साल भर का अनाज सुरक्षित रखा हुआ है। ओमप्रकाश शर्मा भी वेतनिक कर्मचारी हैं और वे प्रतिदिन लगने वाले, बाहर से आने वाले और खपत होने वाले राशन की इंट्री करते हैं और पूरा हिसाब रखते हैं।
बर्तन के सेट में मिलता है यह सब
खाना बनाने के लिए श्रद्धालुओं को बकायदा बर्तनों का संपूर्ण सेट दिया जाता है। इसमें आटा गूंथने की परात, दो थालियां, देगची, तपेली, चम्मच, दो छोटी कटोरियां, तवा, बेलन दिए जाते हैं। उपयोग करने के बाद श्रद्धालु स्वयं अपने बरतन धोते हैं और इसके लिए भी अलग से नल लगे हैं।
दो बोरिंग, दो बड़ी टंकियां करती हैं हजारों कंठों को तृप्त
मंदिर परिसर में दो बोरिंग हैं। परिसर के बाहर दो बड़ी टंकियां लगी हैं। इनसे पेयजल की आपूर्ति की जाती है। प्रतिदिन 4 से 5 हजार लोगों की प्यास इनसे बुझती है। इसके अलावा तीन स्थानों पर नल पोस्ट भी बने हैं। प्रत्येक पोस्ट में चार से पांच नल हैं। यह भी पीने का ही पानी है, लेकिन लोग यहां हाथ-मुंह धोने का उपयोग अधिक करते हैं। परिसर में स्नानागार व शौचालय बने हैं। इसके अलावा एक सुलभ कॉम्पलेक्स भी है।
सोने के लिए बिस्तर, सर्दी में रजाई
श्रद्धालुओं के लिए सोने की भी व्यवस्था मंदिर की ओर से की जाती है। उन्हें सोने के लिए गादी दी जाती है। इस पर वे अपने साथ लाई हुई चादर बिछाकर सोते हैं। सर्दी के दिनों में ओढ़ने को रजाई भी प्रदान की जाती है। हालांकि तकिये की व्यवस्था इसमें शामिल नहीं है।