पौड़ी में है उत्तर भारत का एकमात्र राहु मंदिर
पौड़ी जिले के पैठाणी गांव में राहु का एकमात्र मंदिर देश में ही नहीं विदेशों में भी खासी पहचान रखता है।
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Publish Date: Sat, 09 Jul 2016 07:24:11 PM (IST)
Updated Date: Sun, 10 Jul 2016 03:33:02 AM (IST)
अजय खंतवाल, कोटद्वार (पौड़ी गढ़वाल)
देवभूमि उत्तराखंड में देवताओं को ही नहीं असुरों को भी पूजा जाता है। यहां असुरों के सदियों पुराने भव्य मंदिर हैं। पौड़ी जिले के पैठाणी गांव में राहु का एकमात्र मंदिर देश में ही नहीं विदेशों में भी खासी पहचान रखता है। यह गांव थलीसैण ब्लॉक (राठ क्षेत्र) की कंडारस्यूं पट्टी में स्थित है। सरकारी स्तर पर उपेक्षित होने के बावजूद इस मंदिर की भव्यता को निहारने देश-दुनिया से पर्यटक पैठाणी पहुंचते हैं।
"स्कंद पुराण" में मिलता है वर्णन
"स्कंद पुराण" के केदारखंड में वर्णन है कि राष्ट्रकूट पर्वत पर पूर्वी व पश्चिमी नयार के संगम पर राहु ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। इसी कारण यहां राहु के मंदिर की स्थापना हुई और राष्ट्रकूट पर्वत के नाम पर ही यह "राठ" क्षेत्र कहलाया। साथ ही राहु के गोत्र "पैठीनसि" के कारण इस गांव का नाम "पैठाणी" पड़ा। यह भी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब राहु ने छल से अमृतपान कर लिया तो श्रीहरि ने सुदर्शन चक्र से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया। ऐसी मान्यता है कि राहु का कटा सिर इसी स्थान पर गिरा था।
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स्थानीय निवासी शिक्षक कैलाश थपलियाल के अनुसार पश्चिम की ओर मुख वाले इस प्राचीन मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिग व मंदिर की शुकनासिका पर शिव के तीनों मुखों का अंकन है। मंदिर के शीर्ष पर अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक रूप में गज व सिह स्थापित हैं।
मुख्य मंदिर के चारों कोनों पर स्थित मंदिरों के शिखर क्षितिज पट्टियों से सज्जित हैं। साथ ही मंदिर की तलछंद योजना में वर्गाकार गर्भगृह के सामने अंतराल की ओर मंडप है। मंदिर की दीवारों के पत्थरों पर आकर्षक नक्काशी की गई है, जिनमें राहु के कटे हुए सिर व सुदर्शन चक्र उत्कीर्ण हैं। इसी कारण मंदिर को राहु मंदिर नाम दिया गया।