आज मराठा गौरव छत्रपति Shivaji Maharaj की जयंती है और इस दिन को Shivaji Maharaj Jayanti 2020 के रूप में पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी को हुआ था और बहुत कम उम्र में उन्होंने मराठा साम्राज्य की तरफ कदम बढ़ा दिए थे। अखंड भारत का सपना लेकर चले Shivaji ने मुगलों को नाकों चने चबवा दिए थे। एक महान देशभक्त होने के साथ एक कुशल प्रशासक भी थे। छत्रपति Shivaji Maharaj ने 1674 में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उनकी शौर्य गाथाएं सुनते और सुनाते कई दशक बीत गए लेकिन उनकी वीरता के कुछ किस्से आज भी रोंगटे खड़े कर देते हैं।
ऐसा ही एक किस्सा है यह था वीर Chhatrapati Shivaji Maharaj द्वारा मुगल बादशाह आदिल शाह के सरदार अफजल खान को सबक सिखाने का। यह एक ऐसी घटना थी जब अफजल खान का वीर Shivaji Maharaj में बड़ी ही चतुराई से अंत कर दिया था। इस किस्से का जिक्र होने पर आज भी हर हिंदू का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
यह था पूरा घटनाक्रम
दरअसल, अफजल खान बीजापुर की आदिल शाही हुकूमत का लड़ाका था। वो बहुत बेरहम था और अपनी जीत के लिए किसी भी हद तक जा सकता था। उसने धोखे से कई हिंदुओं की हत्या की थी। Shivaji Maharaj ने 1647 में रायगढ़ और कोंडन किले को जीता और फिर सिंधुदुर्ग और पुरंदर के किले को भी जीता परिणामस्वरुप बीजापुर के सुल्तान इब्राहिम आदिल शाह नें शिवाजी के पिता शाहजी को 1647 ईस्वी में कैद में डाल दिया। शिवाजी नें चतुराई से जल्दी ही उनके पिता जी को आदिल शाह नें कैद से मुक्त कर दिया।
कुछ सालों तक शांत रहने के बाद शिवाजी ने जल्दी अपने सैन्य अभियान को शुरू कर दिया और भिवंडी और कल्याण पर कब्जा कर लिया। इसके बाद, बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह नें 1656 ईस्वी में अपने जनरल अफजल खान को शिवाजी को मृत या जीवित पकड़ने के लिए भेजा। अफजल खान धोखे से शिवाजी का कत्ल करना चाहता था इसलिए उसने Shivaji Maharaj को प्रतापगढ़ के पास मिलने का संदेश भेजा। शिवाजी संदेश स्वीकार कर अफजल खान से मिलने को तैयार हो गए और दोनों के बीच 10 नवंबर 1959 के आसपास मुलाकात तय हुई।
इस मुलाकात के लिए शिवाजी की सेना पूरी तरह से तैयार थी और उनकी सहायता के लिए उनकी मावली सेना पहाड़ों में छिपी हुई थी जो संकट में तुरंत वहां पहुंच जाती। निर्देश थे कि संकट में दुर्ग से तोप चलने की आवाज होगी और इसे सुनते ही मावली सेना तुरंत हमला कर दे। यह मुलाकात प्रतापगढ़ दुर्ग के नीचे ढालू जमीन पर होनी थी जहां शामियाना लगवाया था। वहां पहुंचने का एक ही रास्ता था और बाकि रास्तों को बंद कर दिया गया था।
तय समय पर अफजल खान वहां पहुंचा और उसके साथ उसका अंगरक्षक सैयद बंदा था साथ ही मध्यस्थ कृष्णजी भास्कर भी मौजूद था। शिवाजी पूरी तैयारी के साथ यहां पहुंचे थे। उन्होंने शरीर पर लोहे की जाली पहनी थी और उस पर ढीले कपड़े पहने थे। शिर पर लोहे की टोपी पहनी साथ ही बाएं हाथ में बघनखा वहीं दाएं हाथ में बिछुवा धारण किया।
मुलाकात के दौरान Shivaji Maharaj को गले मिलने आगे बढ़े, तभी अफजल खान ने धोखे से अपने हाथ में बंधा खंजर शिवाजी की पीठ में घोंपने की कोशिश की। शिवाजी भी चालाक थे और अफजल की मक्कारी से वाकीफ थे इसलिए तैयारी से गए थे। जैसे ही अफजल खान ने हमला किया, शिवाजी ने भी अपने हाथ में मौजूद बाघ के नाखून से बने हथियार बघनखा से अफजल खान का पेट चीर दिया। घायल अफजल खान भागा लेकिन युद्ध क्षेत्र में Shivaji Maharaj ने उसका वध कर दिया।
आज भी Shivaji Maharaj के इस पराक्रम का जिक्र होता है तो लोगों में एक अलग ही जोश देखने को मिलता है।