संवाद सूत्र, बिहारशरीफ। मवेशी चराने नदी के पास गए छह बच्चे करीब दस घंटे उफनती नदी के बीच जिंदगी की जद्दोजहद में लगे रहे। उसके बाद मुश्किल रेस्कयू ऑपरेशन के बाद उनको सकुशल निकाला गया। ये सभी बच्चे गिरियक प्रखंड के पटोरिया गांव के पास शनिवार को अचानक उफनाई सकरी नदी के बीच छोटे से टीले पर फंस गए थे। इन बच्चों को प्रशासन ने जीप की हेडलाइट की रोशनी के सहारे सात घंटे लंबे चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद देर रात साढ़े बारह बजे सकुशल निकाला । सायडीह गांव के आठ बच्चे दोपहर मवेशी चराने नदी के नजदीक गए थे। अचानक नदी का पानी काफी बढ़ गया और जिस जगह बच्चे पशुओं को चरा रहे थे, वह चारों तरफ से पानी से घिर गया। पानी का बहाव इतना तेज था कि बच्चे जिन 15 भैंस को चराने के लिए लेकर गए थे, वे सभी पानी में बह गईं। दो बच्चे किसी तरह नदी से निकलने में कामयाब हो गए थे। डीएम योगेंद्र सिंह के मुताबिक प्रशासन को शाम पांच बजे जैसे ही सूचना मिली तुरंत रेस्क्यू टीम के रूप में राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ) को भेजा गया। टीम उन बच्चों तक रात 12 बजे पहुंची। फिर सभी बच्चों को 12.30 बजे सुरक्षित निकाला गया।
नदी के बीच में बने जिस टापू पर बच्चे अपनी भैंसों को चरा रहे थे वहां पर अचानक नदी का जलस्तर बढ़ने से टापू के चारों तरफ से मिट्टी का कटाव होने लगा। तेजी से हो रहे मिट्टी के कटाव की वजह से भैंसे तो बह गईं लेकिन टापू पर बचे छह बच्चे टापू के केंद्र में चले गए और वहां लगी घास पकड़ कर मदद का इंतजार करने लगे। मुश्किल समय में उफनती नदी के बीच फंसे सभी बच्चे एक दूसरे को ढांढस बंधाते रहे। इन सबमें 15 साल का सबसे बड़ा बच्चे ने कहा कि वह तो तैर कर बच सकता था लेकिन बाकी का क्या होगा यह सोचकर रुक गया।
शाम होते होते एसडीआरएफ की टीम भी नदी के किनारे पहुंच गई। लेकिन पानी का बहाव इतना ज्यादा तेज था कि नाव से टापू तक पहुंचने और वहां से बच्चों को सुरक्षित लाने में सात घंटे लग गए। अंधेरा हो जाने की वजह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। ऐसे में वहां मौजूद जीप की हेडलाइट की रोशनी में ऑपरेशन को अंजाम दिया गया। इस दौरान बच्चे करीब दस घंटे तक वहां पर फंसे रहे और घास के सहारे खुद को बचाए रखा। इन बच्चों को बचाने में सायडीह गांव के कवींद्र पासवान व गोरे मांझी की भूमिका भी काफी अहम रही। दोनों जिला प्रशासन को सूचना देने के साथ बच्चों से गुहार लगाने के अलावा एसडीआरएफ टीम की मदद में लगे रहे। नदी में फंसे हुए छह में से तीन बच्चे महज छह छह साल के हैं। बच्चों की यह टोली रोजाना भैंस चराने साथ निकलती थी। सकरी नदी के पाट में उगने वाली घास पशुओं का मुख्य चारा है।