Chandra Shekhar Azad 114th Birth Anniversary: अमर शहीद Chandra Shekhar Azad की 114वीं जयंती 23 जुलाई, गुरुवार को मनाई जा रही है। आजादी के संग्राम में आज़ाद की अपनी अहम भूमिका थी। आजाद का नाम सुनते ही सबसे पहले मूंछों पर ताव देते हुए उनकी रौबदार तस्वीर जेहन में उभर आती है। उन्होंने इसी अंदाज में अपना जीवन जिया और राष्ट्र के नाम खुद को कुर्बान कर दिया। गुरुवार को अगर आप कहीं स्पीच देने जा रहे हैं तो हम आपको यहां आजाद के कुछ चुनिंदा वचन बता रहे हैं। पढ़ें और आजाद को शब्दों के माध्यम से याद करें।
चंद्रशेखर आजाद के याद रखे जाने योग्य कथन
Quote 1 मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो समानता और भाईचारा सिखाता है।
Quote 2 मैं अपने संपूर्ण जीवन की अंतिम सांस तक देश के लिए शत्रु से लड़ता रहूंगा।
Quote 3 मातृभूमि की इस वर्तमान दुर्दशा को देखकर अभी तक यदि आपका रक्त क्रोध से नहीं भर उठता है, तो यह आपकी रगों में बहता खून नहीं है, पानी है।
Quote 4 आज़ाद की कलाई में हथकड़ी लगाना तो असंभव है। एक बार सरकार यह लगा चुकी है, अब तो शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंंगे, लेकिन मेरे जीवित रहते मुझे पुलिस बंदी नहीं बना सकती।
Quote 5 सच्चा धर्म वही है जो स्वतंत्रता को परम मूल्य की तरह स्थापित करे।
Quote 6 यदि अभी तक आपका खून खौल नहीं उठता है, तो क्या आपकी नसों में यह पानी बहता है? इस जवानी का क्या फायदा है यदि यह मातृभूमि की सेवा में काम ना आ पाई। यदि कोई युवा मातृभूमि की सेवा नहीं करता तो उसका जीवन व्यर्थ है।
Quote 7 भले ही मेरा आरंभिक जीवन एक आदिवासी इलाके में व्यतीत हुआ, लेकिन मेरे हदय में मातृभूमि ही बसा करती है।
Quote 8 दुश्मन की गोलियों का हम डटकर सामना करेंगे,आजाद रहे हैं, आजाद ही रहेंगे.
Quote 9 जब तक यह बमतुल बुखारा (आजाद की पिस्तौल का नाम) मेरे पास है, किसने अपनी मां का दूध पिया है, जो मुझे जीवित पकड़ सके।
आजाद का सुप्रसिद्ध नारा
दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे
वे कभी- कभी इस शेर को कुछ इस तरह भी गाते थे.
दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही मरेंगे
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अभी भी जिसका खून ना खौला, वो खून नहीं पानी है; ...
दुश्मन की गोलियों का सामना करेंगे,आजाद ही रहे हैं, आजाद रहेंगे।
यदि कोई युवा मातृभूमि की सेवा नहीं करता है, तो उसका जीवन व्यर्थ है।
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Memorable Quotes for Chandrasekhar Azad
Quote 1 I believe in a religion that teaches equality and brotherhood.
Quote 2 I will fight the enemy for the country till the last breath of my entire life.
Quote 3 Seeing this present plight of the motherland, if your blood is not filled with anger, then it is not blood flowing in your veins, it is water.
Quote 4 It is impossible to handcuff Azad's wrist. Once the government has imposed this, now the body will be broken into pieces, but the police cannot arrest me while I am alive.
Quote 5 True religion is the one that establishes freedom as the ultimate value.
Quote 6 If your blood does not boil yet, does this water flow in your veins? What is the use of this youth if it does not work in the service of the motherland. If a youth does not serve the motherland, then his life is meaningless.
Quote 7 Even though my early life was spent in a tribal area, the motherland inhabits my place.
Quote 8 We will face the enemy's bullets firmly, are free, will remain free.
Quote 9 As long as I have this Bamtul Bukhara (name of Azad's pistol), who has drunk his mother's milk, who can hold me alive.
Chandra Shekhar Azad Short Essay in English
Shaheed Chandrashekhar 'Azad' (23 July 1906 - 27 February 1931) was an important freedom fighter of the Indian freedom struggle. He was among the colleagues of revolutionaries like Shaheed Ram Prasad Bismil and Shaheed Bhagat Singh. In 1922, after Gandhiji stopped the Non-Cooperation Movement, his ideology changed and he joined revolutionary activities and became an active member of the Hindustan Republican Association. While working with this institution, he first committed the Kakori incident on 9 August 1925 under the leadership of Ram Prasad Bismil. After this, in the year 1927 he united all the revolutionary parties of North India and formed the Hindustan Socialist Republican Association Hindustan Socialist Republican Association. Along with Bhagat Singh, he killed Lala Lajpat Rai's death in Lahore by killing Saunders. He reached Delhi and carried out the assembly bombings.
चंद्रशेखर आजाद की संक्षिप्त जीवनी
शहीद चन्द्रशेखर 'आजाद' (23जुलाई 1906 - 27 फ़रवरी 1931) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अहम स्वतंत्रता सेनानी थे। वे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के साथियों में से थे। सन् 1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन बंद कर देने के चलते उनकी विचारधारा में परिवर्तन आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ गए और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के साथ काम करते हुए उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड किया था। इसके बाद वर्ष 1927 में उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए Hindustan Socialist Republican Association हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया। साथ ही भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला सॉण्डर्स का हत्या करके लिया। उन्होंने दिल्ली पहुंचकर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।
आरंभिक जीवन, बचपन और परिवार
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा (अब चन्द्रशेखर आजाद नगर) ( मप्र का अलीराजपुर जिला) में हुआ था। उनके पूर्वज बदरका (वर्तमान उन्नाव जिला उत्तर प्रदेश) बैसवारा से थे। उनके पिता पंडित सीताराम तिवारी संवत् 1856 में अकाल के चलते पैतृक निवास बदरका छोड़कर मप्र की अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे। इसके बाद वे भाबरा में बस गये। यहीं पर चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माता का नाम जगरानी देवी था। आजाद का आरंभिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बीता।
Early life, childhood and family
Chandrashekhar Azad was born in Bhabra (now Chandrashekhar Azad Nagar) (MP's Alirajpur district). His ancestors were from Badarka (present-day Unnao district Uttar Pradesh) from Baiswara. His father, Pandit Sitaram Tiwari Samvat, left the ancestral residence Badarka in 1856, and worked in the princely state of Alirajpur in Madhya Pradesh. After this they settled in Bhabra. Chandrasekhar's childhood was spent here. His mother's name was Jagarani Devi. Azad's early life was spent in tribal dominated areas.
बचपन में चलाए खूब धनुष बाण, यहीं से पनपा सशस्त्र क्रांति का विचार
बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाने का अनुभव प्राप्त किया। इसके चलते उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। बालक चन्द्रशेखर का मन आजादी के लिए अहिंसात्मक तरीकों की बजाय सशस्त्र क्रान्ति की ओर झुक गया। वे बनारस में मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के संपर्क में आये एवं क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। उस दौर में क्रान्तिकारियों का दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के नाम से ख्यात था।
The idea of an armed revolution flourished from childhood
As a child, Azad gained a lot of experience with the Bhil boys with his bow and arrow. Due to this, he had learned shooting in his childhood. Child Chandrashekhar's mind leaned towards armed revolution instead of non-violent methods for freedom. He came in contact with Manmathnath Gupta and Pranvesh Chatterjee in Benares and became a member of the revolutionary party. At that time, the group of revolutionaries was known as "Hindustan Prajatantra Sangh".
प्रखर देशभक्त थे आजाद, जानिये उनके जीवन के कुछ किस्से
आजाद प्रखर देशभक्त थे। उनके जीवन प्रसंग यह साबित करते हैं। काकोरी काण्ड में फरार होने के बाद से ही उन्होंने छुपने के लिए साधु का वेश बनाना सीख लिया था। एक बार वे धन जुटाने के लिए गाज़ीपुर के एक बीमार साधु के पास शिष्य बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद मठ की सम्पत्ति उन्हें मिल सके। लेकिन वहां जाने के बाद ज्ञात हुआ कि साधु तो पहले की तुलना में और अधिक हट्टा-कट्टा होने लगा तो वे वापस आ गये। आमतौर पर सभी क्रान्तिकारी रूस की क्रान्ति गाथाओं से प्रभावित थे। आजाद भी इनमें एक थे लेकिन वे स्वयं पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने में ज्यादा कहीं अधिक आनन्दित होते थे। एक बार जब दल के गठन के लिये वे बम्बई गये तो वहां पर उन्होंने कई फिल्में भी देखीं। हालांकि, उस समय तो देश में मूक फिल्मों का ही चलन था, इसलिए वे फिल्मोंं के प्रति अधिक आकर्षित नहीं हुए।
Azad was a fierce patriot, know some of his life
Azad Prakhar was a patriot. Their life episodes prove this. Ever since he escaped from Kakori, he had learned to dress as a monk to hide. Once, he went to a sick monk in Ghazipur as a disciple to raise money so that he could get the wealth of the monastery after his death. But after going there, it became known that the monks started to become more desperate than before, then they came back. Generally all revolutionaries were influenced by the Russian Revolution stories. Azad was also one of them, but he was much more happy to listen to others than to read himself. Once when he went to Bombay to form the party, he also saw many films there. However, at that time silent films were prevalent in the country, so He Was not much attracted towards films.
वीरता की नई परिभाषा लिखी, उनसे प्रेरित होकर हजारों युवक बने क्रांतिकारी
चन्द्रशेखर आज़ाद के बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारम्भ आन्दोलन और तेज हो गया। यही कारण है कि उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक आजादी के आन्दोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के 16 वर्षों बाद सन् 1947 में देश की आजादी का उनका ख्वाब पूरा तो हुआ पर वे उसे जीते जी देख न सके।
Wrote new definition of bravery, inspired thousands of youth
After Chandrashekhar Azad's sacrifice, the movement started by him intensified. This is the reason that thousands of youths jumped into the freedom movement after taking inspiration from them. After 16 years of Azad's martyrdom, his dream of independence of the country was fulfilled in 1947, but he could not see it live.
ऐसे हुआ था उनका बलिदान, सही अर्थों में आजाद ही थे
आजा़द अल्फ्रेड पार्क में अपने मित्र सुखदेव राज से चर्चा कर ही रहे थे तभी CID का SSP नॉट बाबर वहां आ धमका। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में पुलिस भी आ गई। दोनों ओर से हुई गोलीबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। यह घटना 27 फ़रवरी 1931 के दिन घटित हुई और सदा के लिये इतिहास में दर्ज हो गई। पुलिस ने बिना किसी को सूचना दिये चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था।
This was how He sacrificed Life For Country
Azad was already discussing with his friend Sukhdev Raj at Alfred Park, when CID's SSP Not Babur came there. A large number of police also came after him. Azad received heroism in the firing from both sides. This incident took place on 27 February 1931 and was forever recorded in history. The police cremated Chandrashekhar Azad without informing anyone.
जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए, लोग उसकी पूजा करने लगे
आजाद के बलिदान की खबर लगते ही सारा इलाहाबाद अलफ्रेड पार्क में उमड़ पड़ा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे। लोग उस स्थान की माटी को कपड़ों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। समूचे नगर में आजाद की बलिदान की खबर से तनाव हो गया। शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले होने लगे। लोग सड़कों पर उतर आए। अगले दिन आजाद की अस्थियां चुनकर युवकों का एक जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में इतनी ज्यादा भीड़ थी कि इलाहाबाद की मुख्य सड़कों पर जाम लग गया। ऐसा लग रहा था जैसे इलाहाबाद की जनता के रूप में सारा देश ही उन्हें अंतिम विदाई देने उमड़ पड़ा हो।
People started worshiping the tree under which the free martyrs died
As soon as the news of Azad's sacrifice came, the whole Allahabad gathered at Alfred Park. People started worshiping the tree under which Azad was martyred. People began to take the soil of the place with clothes in vials. The news of Azad's sacrifice throughout the city became tense. In the evening, there were attacks on government establishments. People took to the streets. The next day, a procession of youths was taken out by choosing Azad's ashes. The procession was so crowded that the main roads of Allahabad were jammed. It seemed as if the whole country had flocked to give them a final farewell as the people of Allahabad.
मेरा नाम आज़ाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता, और मेरा पता जेल है.
चंद्रशेखर आजाद द्वारा लिखी कविता आज भी उनके बलिदान और शौर्य की गाथा का गुणगान करती है.
‘मां हम विदा हो जाते हैं, हम विजय केतु फहराने आज,
तेरी बलिवेदी पर चढ़कर मां, निज शीश कटाने आज।
मलिन वेष ये आंसू कैसे, कंपित होता है क्यों गात?
वीर प्रसूति क्यों रोती है, जब लग खंग हमारे हाथ
धरा शीघ्र ही धसक जाएगी, टूट जाएंगे न झुके तार,
विश्व कांपता रह जाएगा, होगी मां जब रण हुंकार।
नृत्य करेगी रण प्रांगण में, फिर-फिर खंग हमारी आज,
अरि शिर गिराकर यही कहेंगे, भारत भूमि तुम्हारी आज।
अभी शमशीर कातिल ने, न ली थी अपने हाथों में।
हजारों सिर पुकार उठे, कहो दरकार कितने हैं।।’
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